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आमम मौर त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड:२ ब्राह्मणों के द्वारा क्रमशः परिवर्तित, परिष्कृत और परिधारित होकर एक विशिष्ट अक्षरमाला में परिणत हो गये। संस्कृत वषा प्राकृत के लिखने में सरलता से प्रयुक्त होने लगे। ब्राह्मणों द्वारा मूतन रूप दिये जाने के कारण सम्भवतः इस लिपि का नाम ब्राह्मी पड़ा। अधिकांश विहान् ब्राह्मी के फिनिशियन से निकलने के पक्ष में है ।
नई स्थापना ___डा० राजबली पाण्डेय ने एक मई स्थापना की है। उन्होंने फिनिशिया वासियों को मूलतः भारतीय बताया है। उनके अनुसार भारत से चल कर कुछ लोग फिनिशिया बस गये थे। वे जाते समय अपनी ब्राह्मी लिपि भी साथ लेते गये। वह लिपि वहां अन्य लिपियों और स्थितियों से प्रभावित होती हुई फिनिशियन के रूप में परिवर्तित हो गई। यही कारण है कि फिनिशियन और ब्राह्मी में सादृश्य प्राप्त होता है। डा. पाण्डेय ने ऋग्वेद ६-५१, १४, ६१, १ के प्रमाणों से इस तथ्य को सिद्ध करने का प्रयास किया है।
डा. पाण्डेय उच्चकोटि के विद्वान् हैं। तर्क और युक्ति से उन्होंने प्रस्तुत सन्दर्भ में जो नई स्थापना करने का प्रयत्न किया है, वह निःसन्देह लिपि-विज्ञान के क्षेत्र में एक दिशा-दर्शन है, पर, भारतवासी फिनिशिया गये, अपनी लिपि साथ ले गये, उनकी अर्थात् ब्राह्मी लिपि का ही विकास फिनिशियन लिपि है, इत्यादि तथ्य बहुत महत्व के हैं। उनके लिए कुछ ठोस प्रमाण चाहिए, केवल शास्त्रीय प्रमाण पर्याप्त नहीं हैं । दक्षिणी सेमेटिक और ब्राही
कुछ विद्वानों का ऐसा अभिमत है कि ब्राह्मी का विकास दक्षिणी सेमेटिक लिपि से हुआ है। ऐसा मानने वालों में टेलर, सेय बादि के नाम मुख्य हैं । ___ कुछ विद्वान ब्राह्मी-लिपि का उद्भव दक्षिणी सेमेटिक की शाखा अरबी लिपि से मानते हैं । पर, वस्तुतः दक्षिणी सेमेटिक लिपि और उसकी शाखा-लिपियों से ब्राह्मी का सादृश्य नहीं है। अरबवासियों का भारतीयों के साथ पुराना सम्बन्ध रहा है केवल इस आधार पर अरबी से बालो के उद्भव की कल्पना करना संगत नहीं है। ऐतिहासिक साक्ष्य है कि अरबवासियों और भारतीयों का सम्पर्क इतना पुराना नहीं है, जिससे ब्राह्मी लिपि के अरबी लिपि से निकलने की कल्पना की जा सके, जो सम्राट अशोक के समय एक समृद्ध लिपि थी।
डो० राइस डेविड्स
डा. राइस डेविड्स ने एक ऐसी लिपि की परिकल्पना की है, जो सेमेटिक अक्षरों के उद्भव से पूर्व ही यूफेटिस नदी की घाटी में ज्यवहृत थी। डा. राइस डेविड्स के अनुसार
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