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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन परिवर्तन भी पूर्ण सक्षम नहीं
चित्र-लिपि भावाभिव्यक्ति का एक माध्यम था, पर, बहुत सक्षम नहीं । स्थल पदार्थों का बोध तो उससे हो जाता, पर, तद्गत या तत्सम्बद्ध भावों को व्यक्त करने का जब प्रसंग आता, तो मानव को कठिनता अनुभूत होती। चित्र में कुछ संयुक्त करने का एक प्रयम और हुआ। यदि एक प्यासी गाय को दिखाना है. तो दौड़ती हुई गाय और पास ही पानी दिखा दिया जाता । इसी प्रकार यदि दुर्भिक्ष का भाव व्यक्त करना होता, तो ऐसा मनुष्य दिखाया जाता, जो दुबैल दीखता, जिसकी पसलियां निकली हुई होती। दुःख या विषाद का भाव ध्यक्त करना होता, तो ऐसी आंखों का चित्र प्रस्तुत किया जाता, जिनसे आंसू ढल रहे हों। चलने का भाव दिखाना होता, तो केवल पैर दिखा दिये जाते, पर, इससे काम नहीं चला।
चीन में प्राचीन काल में चित्र-लिपि का प्रचलन था। वहां भी आन्तरिक भावों को व्यक्त करने हेतु कुछ इसी प्रकार का प्रयास हुआ। यदि वहां मैत्री का भाव व्यक्त करना होता, तो दो मिले हुए हाथों का चित्र बना दिया जाता। यदि सुनने का भाव व्यक्त करना होता, तो एक ऐसे मनुष्य का चित्र बना दिया जाता, जो दरवाजे के पास कान लगाये खड़ा हो।
मिन भी चीन की तरह प्राचीन काल से ही सभ्यता और कला कौशल में उन्नत रहा है। वहां चित्र लिपि का प्रचलन रहा । भावाभिव्यक्ति के सन्दर्भ में वहां भी इसी प्रकार के प्रयास हुए, जो आवश्यकता के बास्तविक पूरक नहीं हो सके । उनसे एक सीमा तक काम तो चलता रहा, पर, विविध भावों की अभिव्यक्ति ऐसे उपायों से सम्भव नहीं हो सकी।
दूसरी विसेष कठिनता यह भी थी कि जाति-वाचक संज्ञाए तो चित्रों द्वारा व्यक्त कर दी जातीं, जैसे, किमो मनुष्य का बोध कराना है, तो मनुष्य का चित्र बना दिया जाता पर, यदि किसी मनुष्य-विशेष-अमुक मनुष्य का बोध कराना हो तो कठिनाई थी । अर्थात् व्यक्तिवाचक संज्ञाओं को व्यक्त करने का कोई मार्ग नहीं था। अनेक नामों के अनेक व्यक्ति, उनके भिन्न-भिन्न रूप, कभी सम्भव नहीं थे, जो चित्रों द्वारा प्रकट किये जा सकते। अकलात्मकता और चित्र : एक दुविधा
चाहे सुन्दर न सही, पर, चित्र बनाना भी तो एक कला है । वह सबसे सध सके, सम्भव नहीं; अतः उन लोगों को बड़ी असुविधा होती, जो चित्र बनाने में अक्षम थे। जो चित्र तो बना सकते थे, पर, अतिशीघ्र कोई अभिव्यक्ति करनी होती, तो शीघ्रता में चित्र बनाने में उन्हें बड़ी कठिनता होती । चित्र और उनके योग द्वारा केवल वर्तमान का भाव व्यक्त होता, पर, अतीत तथा भविष्य की अभिव्यंजना के लिये कोई साधन नहीं था।
चित्र-लिपि के युग में इस प्रकार मानव येन-केन-प्रकारेण अपने को व्यक्त करने का प्रयत्म
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