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२७६ ] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड २ रचना की उपादेयता का वर्णन करते हुए नारद-स्मृति में लिखा है : “यदि ब्रह्मा लिखित या लेखन-कला, दूसरे शब्दों में लिपि रूप उत्तम नेत्र का सर्जन नहीं करते, तो इस जगत् की शुभ गति नहीं होती।" ललितविस्तर में चर्चा
ललितविस्तर बौदों का प्रसिद्ध संस्कृत-ग्रन्थ है। उसके दशम अध्याय में लिपियों की चर्चा है। वहां चौसठ लिपियों का उल्लेख है, जिनमें ब्राह्मी पहली है।
६४ नामों में कतिपय ऐसे नाम हैं, जिनका आधार देश-विशेष, प्रदेश-विशेष या जातिविशेष है। जैसे, अंग-लिपि, धंग-लिपि, मगध-लिपि, ब्रह्मवल्ली - लिपि, द्राविड़-लिपि, कनारि-लिपि, दक्षिण - लिपि, दरद-लिपि, खास्य-लिपि, चीन-लिपि, हूण-लिपि, देव-लिपि, नाग-लिपि, यक्ष-लिपि, गन्धध-लिपि, किन्नर-लिपि, महोरग-लिपि, असुर-लिपि, गड-लिपि,
१. नाकरिष्यद्यवि ब्रह्मा लिखितं चक्षुरुत्तमम् ।
तत्रयमस्य लोकस्य नामविष्यच्छुभा गतिः ।। २. १. ब्राह्मी, २. खरोष्ठी, ३. पुष्करसारी, ४. अंग-लिपि, ५. बंग-लिपि, ६ मगध
लिपि, ७. मांगल्य-लिपि, ८. मनुष्य-लिपि, ९. अंगुलीष-लिपि, १०. शकार-लिपि, ११. ब्रह्मवल्ली-लिपि, १२. द्राविड़-लिपि, १३. कनारि-लिपि, १४. दक्षिण लिपि, १५. उग्र-लिपि, १६. संख्या-लिपि, १७ अनुलोम-लिपि, १८. ऊर्ध्वधमुर्लिपि, १६. बरदलिपि, २०. खाल्य-लिपि, २१. चीन-लिपि, २२. हूण-लिपि, २३. मध्याक्षर-विस्तर-लिपि, २४. पुष्प-लिपि, २५. देव-लिपि २६. नाग-लिपि, २७. पा-लिपि, २८. गन्धर्व-लिपि, २९. किन्नर-लिपि, ३०. महोरग-लिपि, ३१. असुर-लिपि, ३२. गरुड़-लिपि, ३३. मृगचक्रलिपि, ३४. चक्र-लिपि, ३५. वायुमद-लिपि, ३६ भीमदेव-लिपि, ३७. अन्तरिक्षदेव-लिपि, ३८. उत्तरकुरुद्वीप-लिपि, ३६. अपरगौडादि-लिपि, ४०. पूर्वविदेह-लिपि, ४१. उत्क्षेपलिपि, ४२. निक्षेप-लिपि, ४३. विक्षेप-लिपि, ४४. प्रक्षेप लिपि, ४५ सागर-लिपि, ४६. बज्र-लिपि, ४७. लेखप्रतिलेख-लिपि ४८. अनव्रत-सिपि, ४६. शास्त्रावर्त-लिपि, ५०. गमावर्त-लिपि, ५१. उत्ोपावर्त-लिपि ५२. विक्षेपावर्त शिपि, ५३. पावलिखित-लिपि, ५४. निरुत्तरपबसविलिखित-लिपि, ५५. वशोत्तर-पदसन्धिलिखित-लिपि, ५६. अध्या हारिणी-लिपि, ५७. सर्वक्षतसंग्रहणी-लिपि, ५८. विद्यानुल्योम-लिपि, ५९. विमिश्रितलिपि, ६०.षितपस्तम सिपि, ६१. धरणीप्रेक्षपण-लिपि, ६२. सर्वोषधनिष्यन्द-लिपि, ६३. सर्वसारसंग्रहणी-लिपि, ६४. सर्वभूतस्तग्रहणी-लिपि ।
पूल १२५-१२६
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