________________
२२२ ]
आर्या छन्द का पर्याय है । चाहे वह किसी भी छन्द में हो, इस (गाथात्मक) विभाग में धम्मपद आदि ग्रन्थ हैं, जो पद्यबद्ध हैं ।
५. उदान —— सौमनस्य पूर्ण अवस्था में तथागत के मुंह से ज्ञानमय गाथाओं के रूप में जो उद्गार निकले, जो भावात्मकता और प्रीत्यात्मकता से सम्पृक्त हैं, वे उदान कहे गये हैं ।
आगम और त्रिपिटक एक अनुशीलन
[ खण्ड : २
पर, बौद्ध और जैन साहित्य में तत्तच्छास्त्रों के पद्य मात्र को, गाथा शब्द से संज्ञित करने की परम्परा है । बुद्ध वचनों के
६. इतिवृत्तक - संस्कृत रूप 'इत्युक्तकम्' अर्थात् ऐसा कहा गया है। 'बुत्रा हेतं = भगवता' - भगवान् द्वारा ऐसा कहा गया; इससे आरम्भ होने वाले बुद्ध वचन 'इतिवृत्तक' में आते हैं ।
७. जातक - जात या जातक का अर्थ जन्मा हुआ होता है । बुद्ध के पूर्व जन्म की घटनाए जातकों में संग्रहित हैं । जातकों के अतिरिक्त वे त्रिपिटक में अन्यत्र भी प्राप्त होती हैं ।
८. अब्भुत धम्म — योगजन्य विभूतियां, अलौकिक, आश्चर्यजनक या अद्भुत विभूतियों तथा बेसी अद्भुत वस्तुओं का वर्णन ।
६. वेदल्ल—–आन्तरिक उल्लास और तुष्टि प्राप्त कर प्रश्न पूछे जाते हैं, उस सन्दर्भ में जो प्रश्न और उत्तर के रूप में उपदेश हैं, वे वेदल्ल संज्ञक हैं । चुल्लवेबल्ल- सुत्तन्त, महावेदल्लसुतन्त, सम्मादिसुरान्त, सक्कपञ्ह- सुत्तन्त आदि इसके उदाहरण हैं ।
अंगों के उपयुक्त विवेचन से यह स्पष्ट है कि यह विभाजन केवल शैली या कथनप्रकार के आधार पर है । इसके अनुसार एक ही ग्रन्थ के भिन्न-भिन्न अंश कई अंगों के नमूने हो सकते हैं । यह विभाजन केवल इतना सा ज्ञापित करता है कि इस इस प्रकार से भगवान् बुद्ध के उपदेश हैं, जो पिटक वाड्मय में भिन्न-भिन्न स्थलों पर संगृहीत हैं ।
के
आचार्य हरिभद्र ने बौद्ध संस्कृत ग्रन्थ अभिसमयालंकार की टीका में बुद्ध वचन अंगों की चर्चा की है । वे इस प्रकार हैं :
१. सूत्र
४. गाथा ७. इतिवृत्तक
१.
Jain Education International 2010_05
२. गेय
५. उदान ८. निदान
यस्याः पादे प्रथमे द्वादश मात्रास्तथा तृतीयेऽपि । अष्टादश द्वितीये चतुर्थ पंचदश साऽऽ ॥
For Private & Personal Use Only
बारह
३. व्याकरण
६. अवदान
९. वैपुल्य
www.jainelibrary.org