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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
खण्ड:३
३ पुग्गल-पञ्जति
६. यमक ४. धातु-कथा
७. कत्थावत्थुप्पकरण ५. पट्टान
धम्मसंगणि अभिधम्म-साहित्य का सबसे अधिक महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। धम्मसंगणि में भौतिक और मानसिक जगत् को व्याख्या इस सूक्ष्मता तथा विशदता से की गई है कि विद्वान् अध्येता को एतत्सम्बन्धी समस्त विषयों का अच्छा दिग्दर्शन प्राप्त हो जाता है। कर्म के कुशल, अकुशल तथा अव्याकृत विपाक, चित्त और चैतसिक अवस्थाओं का कुशल, अकुशल तथा अव्याकृत के रूप में विश्लेषण प्रभृति अनेकानेक विषयों का इसमें जो तलस्पर्शी विवेचन किया गया है, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि बौद्धमनोविज्ञान की नैतिक व्याख्या का यह अनूठा दिग्दर्शक है।
पिटक-वाङमय का एक अन्य वकिरण
धर्म-तत्व को विविध प्रकार से हृदयंगम कराने के अभिप्राय से पालि-वाड्मय का अनेक प्रकार से वर्गीकरण किया गया है। श्रोता और अध्येता द्वारा धर्म के विभिन्न पक्ष व्यवस्थित तथा विशद रूप में समझे जा सकें, इस हेतु किये गये विभिन्न प्रकार के वर्गीकरण, विश्लेषण, विवेचन और व्याख्यान सचमुच पालि-साहित्य की अपनी विशेषता है। पर, साथ-हो-साथ समीक्षात्मक दृष्टि से विचार करने पर ऐसा ज्ञात होता है कि बौद्धों द्वारा साहित्य का जो अनेकविध वर्गीकरण, वर्गीकरण का पुनः वर्गीकरण; इस प्रकार वर्गीकरणों की एक शृखला. सी खड़ी कर दी गयी है, उसमें विशद विश्लेषण और व्याख्यान से कहीं अधिक उनकी विश्लेषण-प्रिय वृत्ति की प्रेरणा प्रतीत होती है ।
त्रिपिटक और उसके उपविभाग या तदन्तर्वर्ती ग्रन्थों के रूप में किये गये विभाजन के अतिरिक्त एक दूसरे प्रकार के विभाजन में समस्त बुद्ध-वचनों को पांच निकायों में बांटा गया है, जो इस प्रकार हैं : १. दीघ-निकाय
४. अंगुत्तर-निकाय २. मज्झिम-निकाय
५. खुद्दक-निकाय ३. संयुत्त-निकाय
सुत्त-पिटक के पांच निकायों के भी ये ही नाम है। पर, दोनों के आशय में कुछ अन्तर है। इस विभाजन के इन पांच निकायों में तीनों पिटकों के समग्र ग्रन्थ समाविष्ट कर लिये गये हैं। यह विभाजन विषयों की मुख्यता के आधार पर किया गया है। इसके पहले चार निकाय तो सुत्त-पिटक के प्रथम चार निकायों के समान ही हैं। सुत्त-पिटक के उन
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