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२१६ । आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड :२ आदि विषयों का विवेचन है। अनाथ पिंडिक की दीक्षा, जेतवन-दान, महाप्रजापति गौतमी की दीक्षा आदि बौद्ध इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं का भी इसमें समावेश है।
परिवार को परिवार या परिवार-पाठ भी कहा जाता है। यह विनय-पिटक का अन्तिम भाग है। इसे विनय पिटक में वर्णित विषय वस्तु की अनुक्रमणिका कहा जाना चाहिए। यह उन्नीस परिच्छेदों में विभक्त है। उनमें अभिधम्म की शैली पर विनय-पिटक के विषयों की आवृत्ति की गयी है; अतः विषय को समझने के लिए इसमें कोई नवीनता नहीं की गयी है। परन्तु, विनय पिटक को समझने में यह ग्रन्थ विशेष सहायक होता है। भगवान बुद्ध ने कब, किसे, किस प्रसंग में अमुक शिक्षा-पद कहे, मध्य क्या है, अन्त क्या है, संघ के आन्तरिक संघर्ष कितनी तरह के होते हैं; आदि प्रश्न इस ग्रन्थ में उठाये गये हैं और उनके उत्तर दिये गये हैं। अमुक समस्या, शंका या प्रश्न का विनय पिटक में क्या समाधान है, इस प्रकार के तथ्यों का ज्ञान पाने की दृष्टि से इस ग्रन्थ की अपमी उपयोगिता है । विंटरनित्ज ने परिवार का विनयपिटक के साथ वही सम्बन्ध बतलाया है, जो अपनी अनुक्रमणिका और परिशिष्टों के साथ वेद का है। इसमें कुछ ऐसे उल्लेख हैं, जिनसे प्रकट होता है कि यह विनय-पिटक के बाद की रचना है। पिटकों के लिपि-बद्ध किये जाने का भी इसमें उल्लेख है। राजकुमार भिक्षु महेन्द्र के लंका जाने, वहां विनय की परम्परा स्थापित करने के साथ-साथ सिंहल के उन उनतीस भिक्षुओं का नामोल्लेख भी किया गया है, जिन्होंने ताम्रपर्णी में विनय-पिटक का प्रकाश किया। इन संकेतों से सहज ही यह अनुमान होता है कि परिवार या परिवार-पाठ को रचना, जैसा वह इस समय प्राप्त है, लंका में बहुत समय बाद हुई।
अभिधम्म-पिटक __ अभिधम्म-पिटक पानि-त्रिपिटक का तीसरा मुख्य भाग है। बौद्ध परम्परा में ऐसी मान्यता है कि अभिधम्म पिटक धम्म की अत्यधिक गहराई में जाता है। उसकी रचना विशिष्ट अधिकारियों के लिए हुई है, न कि साधारण लोगों के लिए। अटुसालिनी, मनोरथपूरणी और विभंगअट्ठकथा में उल्लेख है कि देवताओं और मनुष्यों के शास्ता तथागत ने सर्वप्रथम अभिधम्म का उपदेश त्रायस्त्रिंश स्वर्ग में स्थित अपनी माता देवी महामाया और अन्य देवताओं को दिया था। तदनन्तर उन्होंने उसी की पुनरावृत्ति अपने महाप्राज्ञ अन्तेवासी, धम्म सेनापति सारिपुत्त को उद्दिष्ट कर की थी। धम्म सेनापति सारिपुत्त ने उसे अन्य पांचसो भिक्षुओं को उद्दिष्ट कर उपदिष्ट किया।
सुत्त-पिटक में अभिविनय शब्द के साथ-साथ अभिधम्म शब्द का भी प्रयोग हुआ है। वहां ये दोनों शब्द क्रमशः विनय और धर्म सम्बन्धी गम्भीर उपदेश के अर्थ में आये हैं।
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