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________________ भाषा और साहित्य ] , पालि-भाषा और पिटक-वाङ्मय [ २१३ ३. मातुगाम-संयुत्त ७. चित्त-संयुत्त ४. जम्बुखादक-संयुत्त ८. मामणि-संयुक्त ५. सामण्डक-संयुत्त ६. असखत-संयुत्त ६. मोग्गलान-संयुक्त १०. अव्याकत-संयुत्त (ङ) महावग्ग १. मग्ग-संयुत्त ७. इद्धिपाद-संयुत्त २ बोज्झग-संयुक्त ८, अनुरुद्ध-संयुत्त ३. सतिपट्टान-संयुत्त ९. ज्ञान-संयुत्त ४. इन्द्रिय-संयुक्त १०. आनापाण-संयुत्त ५. सम्मप्पधान-संयुत्त ११. सोतापन्नि-संयुत्त ६. बल-संयुत्त १२. सच्च-संयुत्त अंगुत्तर-निकाय : ग्यारह निपातों में विभक्त है। इसका विभाजन संख्या के आधार पर है। एक-एक संख्या से सम्बन्ध रखने वाले, दो-दो संख्या से सम्बन्ध रखने वाले, इस प्रकार क्रमशः ग्यारह तक की संख्या से सम्बन्ध रखने वाले बुद्धोपदेशों का यथाक्रम संकलन है। ग्यारह निपात इस प्रकार हैं : १. एकक-निपात ७. सतक-निपात २. दुक-निपात ८. अट्ठक-निपात ३. तिक-निपात ९. नवक-निपात ४. चतुक्क-निपात १०, दसक-निपात ५. पंचक-निपात ११. एकादसक-निपात ६. छक्क-निपात खुद्दक-निकाय : इसके अन्तर्गत पन्द्रह स्वतन्त्र ग्रन्थ हैं, जो इस प्रकार हैं : १. खुइक-पाठ २. धम्मपद ३. उदान ४. इतिवृत्तक ५. सुत्त निपात ६. विमानवत्थु ७. पेत-वत्थु ८. थेर-गाथा ६. थेरी-गाथा १०. जातक ११. निद्दस १२. पटिसम्भिदा-मग्ग १३. अपादान १४. बुद्धवंस १५, चरिया-पिटक ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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