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________________ भाषा और साहित्य ] पालि-भाषा और पिटक-वाङमय १८१ न होने के कारण हम यह तो स्वाभाविक ही मान सकते हैं कि नाना प्रदेशों से आये हुए भिक्ष अपनी अपनी बोलियों में ही बुद्ध-वचनों को समझने का प्रयत्न करते होंगे।"1 ____ बुद्ध ने भिक्षुओं को 'सकाय निरुत्तिया' का जो आदेश दिया, इस सम्बन्ध में डा. गायगर का अर्थ एक भिन्न दिशा में जाता है। उन्होंने बताया है कि भगवान् बुद्ध की अनुज्ञा में जो 'सकाय निरुत्तिया' शब्द आया है, उसका अन्वय 'भिक्खवे' के साथ नहीं, बुद्ध-वचन के साथ है । सकाय निरुत्तिया का अन्वय भिक्खने के साथ होता है, तो अर्थ की संगति के लिए वो ( तुमको ) पद आना चाहिए था। तभी उसका अर्थ भिक्षुओं की अपनीअपनी भाषा हो सकता था। पर मूल-पाठ के साथ 'वो' शब्द नहीं आया है; अतः यह सहज ही सिद्ध होता है कि व्याकरण के अनुसार 'सकाय निरुत्तिया' शब्द बूद्ध-वचन से सम्बद्ध होगा । तदनुसार उक्त वाक्य का अर्थ यह होगा कि "भिक्ष ओ ! बुद्ध-वचन को उसकीबुद्ध-वचन की भाषा में सीखने की मैं अनुज्ञा देता हूं।" इसका निष्कर्ष यह हुआ कि वुद्धवचन को मागधी भाषा में ही सीखने की बुद्धदेव ने आज्ञा दी।' आचार्य बुद्धघोष ने 'सकाय निरुत्तिया' की व्याख्या इसी प्रकार की है : “यहां स का निरुत्ति-स्वका निरुक्ति-स्वकीय भाषा से सम्यक् सम्बुद्ध द्वारा प्रयुक्त मागधी भाषा के व्यवहार का तात्पर्य है।" डा० गायगर ने इस तथ्य पर बहुत बल दिया है कि बुद्ध-वचनों को मौलिक एवं प्रामाणिक रूप में अक्षुण्ण तथा अपरिवत्यं बनाये रखने की उस समय बहुत तत्परता थी और यह सम्भव है कि बाद में भी उसका अनुसरण होता रहा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया है कि न तो भगवान् बुद्ध का ही और न भिक्षुओं का ही मन्तव्य इस प्रकार का हो सकता था कि वे ( भिन्न-भिन्न प्रदेशों के भिक्षु ) भिन्न-भिन्न भाषाओं में बुद्ध-घचन अधिगत करें। डा• गायगर ने 'सकायनिरुतिया' की अपनी-अपनी भाषापरक व्याख्या को अनुचित ठहराने का प्रयत्न किया है। भिक्षु सिद्धार्थ ने भो आचार्य बुद्धघोष और डा० गायगर के मत का अनुसरण किया । है। उन्होंने लिखा है कि जब भगवान् बुद्ध ने सस्कृत जैसी परिमार्जित और समाहत भाषा में अपने उपदेशों को रखे जाने की स्वीकृति नहीं दी, तब यह कैसे सम्भव हो सकता है कि वे अपने उपदेशों को साधारण बोलचाल की भाषा में रखे जाने की अनुज्ञा देते। उनके अनुसार १. पालि साहित्य का इतिहास, पृ० २२ । 2. Pali Literature & Language P. 6-7 ३. एत्य सका निरुत्ति नाम सम्भा सम्बुद्धन वुत्तप्पकारो मागधको वोहारो। 4. Pali Literature and Languages, P. 7 Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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