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________________ भाषा और साहित्य ] पालि-भाषा मोर पिटक-वाङमय पलि और विन्ध्य प्रदेश की भाषा पालि के उद्भव के सम्बन्ध में एक मत यह भी है कि बह विन्ध्य प्रदेश की भाषा के आधार पर विकसित है। इस मत के पुरस्कर्ता आर० ओ० फ्रैंक हैं। उन्होंने इसका कारण यह बतलाया है कि पालि की गिरनार के शिलालेख की भाषा से सर्वाधिक समानता है। ___वेस्टर गार्ड और ई० कुहन ने भी यही कारण पालि को उज्जयिनी की भाषा पर आधारित बताते हुए उपस्थित किया है। यहां प्रश्न उपस्थित होता है कि क्या विन्ध्य प्रदेश और उज्जयिनी-प्रदेश की भाषा एक थी या बहुत कुछ समान थी ? आर० ओ० फक ने यह भी उल्लेख किया है कि मध्यदेश के पश्चिमी भाग के शिलालेखों से पालि का स्वरूप बहुत मेल खाता है। उन्होंने उनसे कुछ असमानताएं भी बतलाई हैं । विन्ध्य प्रदेश मध्यदेश का ही एक भाग है। उसकी भाषा का सम्भवतः पश्चिमी मध्यदेश ( उज्जयिनीप्रदेश ) की भाषा पर विशेष प्रभाव रहा होगा। यही आधार आर० ओ० फेंक को पालि का उद्गम-स्थल विन्ध्यदेश के पश्चिमी भाग को मानने में सम्भवतः उत्प्रेरक हुआ हो । स्टैन कोनो स्टैन कोनो' ने भी विध्य प्रदेश को ही पालि का उद्भव स्थान स्वीकार किया है। पर उन्होंने जो कारण दिये हैं, वे पृथक् हैं। उनके विचार आर० ओ० क से मेल नहीं खाते । स्टेन कोनो का कहना है कि पालि पैशाची प्राकृत के बहुत समान है। दूसरी बात उन्होंने यह स्थापित की है कि पैशाची प्राकृत विन्ध्य प्रदेश में उज्जयिनी के आस-पास प्रचलिस थी। स्टेन कोनो ने पैशाची के विन्ध्य प्रदेश के अन्तर्गत उज्जयिनी के परिपार्श्व में बोले जाने का जो उल्लेख किया है, भाषा-वैज्ञानिकों की दृष्टि में वह समीचीन नहीं है। पैशाची उज्जयिनी या मालव में प्रयुक्त नहीं थी। सुप्रसिद्ध भाषा-तत्वविद् सर जार्ज ग्रियसन ने पैशाची को केकय और पूर्वी गान्धार की बोली बतलाया है। स्टेन कोनो का मत प्रियसन के प्रतिकूल है। वस्तुतः विद्व समाज में ग्रियसन का मत ही विशेष समादृत है और युक्ति पुक्त भी है। 1. Pali Literature and Language, p. 3-4 ( Preface ) Dr. Gaigar, 2. History of Indian Literature, vol. II, P. 604 Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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