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________________ भाषा और साहित्य मध्यकालीन भारतीय आय भाषाएं [ १५५ रण का इससे प्रभावित होना स्वाभाविक था ही, सम्ध्रान्त कुलों और राज-परिवारों तक पर इसका प्रभाव पड़ा | महावीर और बुद्ध के समकालीन कुछ और भी धर्माचार्य थे, जो अपने आपको तीर्थ कर कहते थे। पूरण कश्यप, मक्खलि गोसाल, अजितकेसकंबलि, पकुध कच्चायन तथा संजयवेलट्ठिपुत्त आदि उनमें मुख्य थे। बौद्ध वाङमय में उन्हें अक्रियावाद, नियतिवाद, उच्छेदवाद, अन्योन्यवाद तथा विक्षेपवाद के प्रवतंक कहा गया है। यद्यपि आचार-विचार में उनमें भेद अवश्य था, पर, वे सबके सब श्रमण-संस्कृति के अन्तर्गत माने गये हैं। ब्राह्मण-संस्कृति यज्ञ-प्रधान यो और श्रमण-संस्कृति त्याग-वैराग्य और संयम-प्रधान । श्रमण शब्द को विद्वानों ने कई प्रकार से व्याख्या की है। कुछ विद्वानों ने इसे श्रम, सम और शम पर आधृत माना है। फलतः तपश्चर्या का उग्रतम स्वीकार, जातिगत जन्मगत उच्चत्व का बहिष्कार तथा निर्वेद का पोषण; इन पर इसमें अधिक बल दिया जाता रहा है । श्रमण-परम्परा के अन्तर्वर्ती ये सभी आचार्य याज्ञिक तथा कर्मकाण्ड-बहुल संस्कृति के विरोधी थे। यह एक ऐसी पृष्ठभूमि थी, जो प्राकृतों के विकास और व्यापक प्रसार का आधार बनी। भगवान महावीर और बुद्ध ने लोक-भाषा को अपने उपदेशों का माध्यम बनाया। सम्भव है, उपयुक्त दूसरे धर्माचार्यों ने भी लोक-भाषा में ही अपने उपदेश दिये होंगे। उनका कोई साहित्य आज प्राप्त नहीं है। ___ महावीर और बुद्ध द्वारा लोक-भाषा का माध्यम स्वीकार किये जाने के मुख्यतः दो कारण सम्भव हैं । एक तो यह हो सकता है, उन्हें आर्यक्षेत्र में व्याप्त और व्याप्यमान याज्ञिक व कर्मकाण्डी परम्परा के प्रतिकूल अपने विचार 'बहुजन हिताय बहुजन सुखाय' जनजन को सीधे पहुंचाने थे, जो लोक-भाषा द्वारा ही सम्भव था। दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि संस्कृत के प्रति भाषात्मक उच्चता किंवा पवित्रता का भाव था, जो याज्ञिक परम्परा और कर्म-काण्ड के पुरस्कर्ता पुरोहितों की भाषा थी । उसका स्वीकार उन्हें संकीर्णतापूर्ण लगा होगा, जो जन-मानस को देखते यथार्थ था। प्राकृतों को अपने उपदेश के माध्यम के रूप में महावीर और युद्ध द्वारा अपना लिये जाने पर उन्हें (प्राकृतों को ) विशेष वेग तथा बल प्राप्त हुआ। उनके समय में मगध ( दक्षिण बिहार ) एक शक्तिशाली राज्य के रूप में प्रतिष्ठित हो चुका था। उत्तर बिहार में वज्जिसंध के कतिपय गणराज्य स्थापित हो चुके थे और कौशल के तराई के भाग में भी ऐसी ही स्थिति थी । महाघोर धज्जिसंघ के मन्तघर्ती लिच्छवि गणराज्य के थे और बुद्ध कौशल के अन्तर्घर्ती मल्लगणराज्य के । यहां से प्राकृतों के उत्तरोत्तर उत्कर्ष का काल गतिशील होता है । तब तक प्राकृत ( मागधी ) मगध साम्राज्य, जो मगध के चारों और दूर-दूर तक फैला हुआ था, में राज-भाषा के पद पर प्रतिष्ठित हो चुकी थी। प्राकृतों का उत्कर्ष Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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