SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन अठारह प्रकार की देशी भाषाओं में प्रवीण हुआ । "1 ज्ञातृषमंकथासूत्र का एक दूसरा प्रसंग है : " वहां चम्पा नगरी में देवदत्ता नामक गणिका निवास करती थी । वह धन सम्पन्न तथा अठारह देशी भाषाओं में निपुण थी । "" 'वह दृढ़प्रतिज्ञ बालक" 'अठारह १४४ ] कुमार".". जैन वाडमय के और भी अनेक प्रसंग हैं । जैसे ". प्रकार की देशी भाषाओं में विशारद था । "3 .......... हड़प्रतिज्ञ बालक 'अठारह देशी भाषाओं में चतुर था।" "वहाँ वाणिज्यग्राम में कामोद्ध वा नामक वेश्या थी, जो अठारह देशी भाषाओं में कुशल पी ।"5 इन प्रसंगों से यह अनुमित होता है कि भिन्न-भिन्न प्रदेशों में जो लोकजनीन भाषाए या पं० हरगोविन्ददास टी० सेठ के शब्दों में प्रथम स्तर की प्राकृत, जिन्हें सर जार्ज ग्रियर्सन ने Primary Prakrits कहा है, प्रचलित थीं, उन्हें देवभाषा या देशीभाषा के नाम से अभिहित किया गया है। इस सम्बन्ध में कतिपय पाश्चात्य भाषा-वैज्ञानिकों का मत है कि प्राकृत भाषाओं में जो देशी शब्द और धातुएं प्रचलित हैं, वे वास्तव में द्रविड़ परिवार तथा आग्नेय परिवार से आई हैं, जो अनार्य भाषा-परिवार हैं; क्योंकि आर्यों के भारत आने से पूर्व यहां मुख्यतः द्रविड़ परिवार तथा आग्नेय परिवार की भाषाएं बोलने वाले लोग बसते थे । आर्यों द्वारा भारत की भूमि ज्यों-ज्यों अधिकृत की जाती रही, वे ( अनायं) १. तते गं से मेहेकुमारे " होत्या । "अट्ठारसविहिपगारदेसी मासाविसारए - शातृधर्मकथा सूत्र, अ० १ २. तत्य णं चंपाए नयरीए देवदत्ता माम गणिया परिवसइ अड्ढा " 0.00 विसारया । ३. तए ण बढपद्दष्णे बारए -ज्ञातृधर्मकथा सूत्र, ३८.९२ ****** ... अट्ठा रस विहदे सिप्पगारभासा विसारए । - राजप्रश्नीय सूत्र, पत्र १४८ - ४. तन बढपणे दारए... अट्ठारसदेसीभासाविसारए । - औपपातिक सूत्र, अवतरण १०९ Jain Education International 2010_05 [ लण्ड : २ ५. लक्ष्य ण वाणियगामे कामज्झया णामं गणिया होत्या. अट्ठारसवेसीमासा विसारया । - विपाक श्रुत, पत्र २१.२२ For Private & Personal Use Only 2004 'अट्ठा रसवेसीमाता www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy