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________________ १२० ] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : २ भाषाओं के रूप में प्रचलन था और उच्च कहे जाने वाले व्यक्तियों में संस्कृत का प्रयोग चलता था, पर, कादाचित्क और साथ-ही-साथ प्रयत्नपूर्ण । लोक प्रयुक्त भाषा जीवित होती है। जीवित भाषा में सर्वत्र एकरूपता नहीं होती । स्थान -भेद, जाति-भेद, व्यवसाय-भेद आदि ऐसे कारण हैं, जिनसे उसका रूप कुछ-कुछ परिवर्तित हो जाता है और वह भी भिन्न-भिन्न प्रकार से । नाट्य शास्त्र के प्रणेता आचार्य भरत ने नाटक में किन-किन पात्रों द्वारा किन-किन प्राकृतों का उपयोग किया जाना चाहिए, इसका विस्तृत ब्यौरा दिया है। प्रस्तुत विषय के स्पष्टीकरण के हेतु उसकी चर्चा यहां अपेक्षित है । भरत ने अग्रांकित रूप में प्रस्तुत विषय में सूचन किया है ' पात्र भृत्य ( नौकर ) राजपुत्र सेठ धू हाथी, घोड़े, बकरे, ऊंट आदि के घोष स्थान में बसने वाले लोग - खस, शकाक्ष्य, घोषक तथा। इस प्रकार के अन्य व्यक्ति पुल्कस तकार, नगर-रक्षक, सुभट वनचर राजा के अन्तःपुर में सुरंग खोदने वालों का ध्यान रखने वाला, अश्व-रक्षक, आपद्ग्रस्त नायक विदूषक प्रभृति उदीच्य अङ्गारकार, आखेटक, काष्ठयन्त्रोपजीवी }} १. नाट्य शास्त्र, १७, ५१-५८ नायिका, सखी भाषाओं के ये जो अनेक नाम सूचित आदि पर आवृत प्राकृतों के अनेक रूप हैं। Jain Education International 2010_05 } भाषा अद्धमागधी अवन्तिजा आभीर अथवा शाबरी खस देश की भाषा ( खासी ) चाण्डाली दाक्षिणात्या द्रामडी मागधी प्राच्या चाह्निक शकार भाषा ( शकारी ) अशतः धनौवासी शौरसेनी किये गये हैं, वे स्थान भेद, वर्ग-भेद, व्यवसाय-भेद भाज भी देखा जाता है, एक ही प्रदेश की भाषा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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