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________________ ११० ] आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : २ ___ धातु स्वरूप में प्रायः दो तत्त्व सन्निहित रहते हैं-क्रिया और उसके सम्पादन का प्रकार । उदाहरण के लिए दृश् धातु को लें। दृश् प्रेक्षणे। दृपा धातु प्रेक्षण अर्थ में है। प्रेक्षण का आशय ईक्षण–देखना मात्र नहीं है, प्रकृष्टतापूर्वक ईक्षण है। तात्पर्य यह है कि दृश् धातु में देखने रूप क्रिया का अभिप्राय भी सन्निहित है और देखने के प्रकृष्ट प्रकार का विशेष भाशय भी। यदि प्रकृष्ट प्रकार को गौण कर दें, तो क्रिया का विशेष महत्व नहीं रह जाता। करोति, अस्थि, भवति जैसी सामान्य क्रियाए भी वहां काम दे सकती है। साथ-ही-सा यह भी है, ऐसी क्रियाओं की विद्यमानता, अविद्यमानता का कोई विशेष अर्थ नहीं रह जाता। फलत: वाक्य में क्रियाओं का स्थान सर्वथा गौण हो जाता है अथवा वे आवश्यक न रहने से गौण या अदृष्ट हो जाती हैं। इसे नाम-प्रधान शैली कहा जा सकता है। इसमें धातु को विशेषण तथा सामान्य क्रिया में परिणत करके भी वाक्य बना लिया जाताहै। विभक्तियों का भी विशेषणों के रूप में परिणमन हो जाता है। कुछ उदाहरण ध्यातव्य हैं : क्रिया-प्रधान नाम-प्रधान नरो रथमारूढः तैर्मतम् नरो रथमारुरुक्षत् तेऽमन्यन्त स यन्त्रं चालयति अहं ग्रन्थमपठम् स क्रीडति अहं विवदामि धर्म आचार्यते पुस्तकं पठ्यते स भाषते ते स्तुन्वन्ति शास्त्रस्य वार्ता कुम्भकारेण कृत: घटः रोगेण कृता पीड़ा यन्त्रचालकः सः अहं ग्रन्थं पठितवान् स क्रीडां करोति अहं विवादं करोमि धर्म आचरितो भवति पुस्तकं पठितं भवति स भाषणं करोति ते स्तुतिं कुर्वन्ति शास्त्रसम्बन्धिनी वार्ता कुम्भकारकर्तृकः घटः रोगकर्तृका पीड़ा उत्तरवर्ती संस्कृत-साहित्य में इस शैली का विशेष रूप से प्रचलन हुआ। इसमें समासों का अधिक प्रयोग होने लगा । समग्र वाक्य का विशेषण में संक्षिप्तीकरण किया जाने लगा। संस्कृत के पुराकालीन साहित्य में क्रिया-प्रधान शैली का प्रवर्तन था। वैदिक साहित्य के ब्राह्मण-प्रन्यों में यह शैली दृष्टिगत होती है। यास्क और पाणिनि की चर्चा की ही जा चुकी है। पतंजलि के महाभाष्य में भी क्रिया-प्रधान शैली की मुख्यता है। पर, साथ-ही-साथ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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