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उदाहरणार्थ, दरद भाषा-समूह को लें। कश्मीर में कश्मीरी भाषा ( 'क' 'शीर') को लेकर दो विचारधाराएं हैं। पैशाची प्राकृत और संस्कृत के प्रभाव के साथ-साथ प्राचीन कश्मीरी पर एक अोर से पहलवी, पश्तो और पुरानी फारसी का, वैसे ही दूसरी पोर तिब्बती-मंगोल भाषाओं का भी प्रभाव है। कई ध्वनियां और शब्द मध्य-पूर्व के देशों से ज्यों-के-त्यों लिये गये हैं।
मुनिश्री नगराजजी का मैं बहुत कृतज्ञ हूं कि उनकी इस महान कृति का मैं परिचय पा सका। यह ग्रन्थ एक संग्रहणीय और सहज पठनीय कृति बन गई है। इससे आधुनिक भारतीय भाषाओं के वैज्ञानिक अध्ययन-अध्यापन में बहुत सहायता ले सकेंगे। मैं मुनिजी के इस ग्रन्थ की महत्ता इन्हीं शब्दों में कहूंगा कि जहां-जहां भारतीय भाषा विज्ञान के ग्रन्थ हों, इस ग्रन्थ जैसी पुस्तक से उन ग्रन्थालयों की शोभा बढ़ेगी।
कलकत्ता
-प्रभाकर माचवे
८-११-१९८२
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