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________________ भाषा और साहित्य ] प्राचीन भारतीय आर्य भाषाएं सामग्री इसमें आकलित है। इसी कारण पिण्टरनित्ज ने इसे टोना-टोटका और यन्त्र-मन्त्र करने वाले पुरोहितों की रचना कहा है। अन्य वेदों की तरह उपयुक्त सामग्री के अतिरिक्त इसमें धार्मिक संस्कारों में प्रयुक्त होने वाले कुछ सूक्त तथा देवताओं के अभिनन्दन व प्रशस्ति में रचित प्रार्थनाए भी हैं। अथर्व वेद को अथर्वाङ्गिया, भृग्वाङ्गिरा तथा ब्रह्मवेद भी कहा जाता है । सम्भवतः अंगिरा शब्द का प्रयोग हानि और विनाश करने वाले कार्यों के लिए है। अथर्वा शब्द का अर्थ पुरोहित है, विशेषतः वह पुरोहित, जो मन्त्र आदि के प्रयोग में सिद्ध हो । इस वेद को 'शोनक' और 'पप्पलाद' नामक दो शाखाए हैं, जिनमें विशेषतः प्रथम का ही अधिक प्रचलन है। अमंगल, अशुभ और विनाशपरक विषयों से सम्पृक्त होने के कारण कुछ लोग अथर्व वेव को आसुरी विद्या में गिनते हैं । यही कारण है कि इसे वेदत्रयी में नहीं गिना जाता रहा है। वस्तुतः विशुद्ध वेदों के रूप में ऋक्, यजुष और साम की ही गणना थी। बहुत समय तक यही परम्परा रही। आचार्य पुष्पदन्त रचित सुप्रसिद्ध महिम्नः स्तोत्र के निम्नांकित श्लोक से यह प्रकट है : त्रयी सांस्यं योगः पशुपतिमंतं वैष्णवमिति, प्रभिन्ने प्रस्थाने परमिदमदः पथ्यमिति च । रुचीनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषां, नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इति ॥ पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार यह वेद सबके अन्त में बना, सम्भवतः आर्यों के बंगाल में पहुंचने के पश्चात् । वहाँ जादू-मन्त्र, टोने-टोटके आदि पहले से ही प्रचलित रहे है। बहुत . समय बाद इसे वेदों में परिगणित किया गया । ब्राह्मारा-मान्थ याज्ञिक कर्म-काण्ड का एक विस्तृत विधि-क्रम या पूरा शास्त्र है। वैदिक विद्वानों ने ब्राह्मण-ग्रन्थों में इसका विशद विवेचन किया है । यजमान', पुरोहित, होता , उद्गाता', १. यज्ञ करने वाला गृहस्थ । २. उच्च तथा स्पष्ट स्वरों से मन्त्रों का उच्चारण कर देवताओं को आह्वान करने वाला । ३. संगीत के नियमों के अनुसार सामवेद के मन्त्रों का गान कर देव-स्तुति करने वाला। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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