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भाषा और साहित्य ]
विश्व भाषा प्रवाह
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विरोस् नाम की कल्पना बहुत प्राचीन नहीं है । कुछ ही समय पूर्व यह की गई है । उससे पहले उन लोगों को, जैसा कि पहले संकेतित हुआ है, आर्य कहा जाता था । अब भी वह नाम प्रचलित है ।
आदि स्थान भारत : एक अभिमत
विरोस् ( आर्य ) लोगों का आदि स्थान भारत में ही था, यह एक मत है । इसके अनुसार आर्य कहीं बाहर से नहीं आये । हो सकता है, वे यहां से बाहर के देशों में गये हों । भारत एक विशाल देश है । उसमें किसी स्थान - विशेष का निश्चय कर लेना होगा कि आर्य प्राचीनकाल में वहां बसते थे ।
भारत को आर्यों का मूल स्थान मानने वालों में प्रमुख भारतीय विद्वान् ही हैं । भारत में आर्यों के किसी एक निश्चित स्थान के विषय में उनका अभिमत एक नहीं है । श्री एल० डी० कल्ला कश्मीर या हिमालय में उनका आदि स्थान स्वीकार करते हैं । ख्यातनामा मनीषी महामहोपाध्याय डा० गंगानाथ झा के अनुसार आर्यों का आदि स्थान ब्रह्मर्षि देश है । मनुस्मृति में ब्रह्मर्षि देश के सम्बन्ध में उल्लेख है : "कुरुक्षेत्र, मत्स्य, पांचाल और शूरसेन प्रदेश ब्रह्मर्षि देश के अन्तर्गत हैं ।" इस परिभाषा के अनुसार कुरुक्षेत्र के आसपास का स्थान अलवर, बैराठ आदि के परिपाद की भूमि, मथुरा या ब्रजभूमि का प्रदेश, पंजाब, जम्मू और हिमाचल के बीच का क्षेत्र ब्रह्मर्षि देश में आना चाहिए ।
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प्रमुख इतिहासवेत्ता श्री डी० एस० त्रिवेदी के अनुसार देविका उसकी घाटी में स्थित मुलतान का क्षेत्र आर्यों का आदि स्थान था । शब्द की व्युत्पत्ति मूल स्थान से जोड़ते हैं । आर्यों का मूल स्थान होने के अनुसार इस क्षेत्र का मुलतान नामकरण हुआ ।
इतिहास के एक दूसरे बड़े विद्वान् श्री अविनाशचन्द्र दास ने 'ऋग्वेदिक इण्डिया' नामक पुस्तक में आर्यों का मूल निवास स्थान सरस्वती के सरस्वती के तटीय प्रदेश को बताया है ।
उद्गम स्थल हिमालय अथवा
नदी के तट पर या
कुछ विद्वान् मुलतान से ही उन विद्वानों
सरस्वती और दृषद्वती वैदिक काल की नदियां थीं। ऋग्वेद और ताण्ड्य ब्राह्मण में उनका वर्णन है । ये पंजाब और राजस्थान के उत्तरी भाग में प्रवहमान थीं । दिनों इनका तटीय प्रदेश बहुत उधेर तथा समृद्ध था ।
उन
१. कुरुक्षेत्रं च मत्याश्च पंचालाः शूरसेनकाः ।
एष ब्रह्मर्षिदेशो वे ब्रह्मावर्तादनन्तरः ॥ मनुस्मृति, २।१९
२. ऋग्वेद, ३।२३।४
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