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भाषा और साहित्य ]
. विश्व भाषा-प्रवाह सकते हैं, जो मानवीय सभ्यता, दर्शन, चिन्तन, समाज-विकास एवं साहित्य-सर्जन के अनेक गरिमान्वित पक्षों को प्रकाश में लाने वाले हों। पारिवारिक सादृश्य के मुख्य आधार
शब्द-समूह ( शब्द और अर्थ ) रचना-क्रम अथवा सम्बन्ध-तत्व ( व्याकरण ) तथा ध्वनि; ये तीन विषय ऐसे हैं, जिनका एक भाषा-परिवार में किसी-न-किसी रूप में व्यक्त, किंचिद् व्यक्त या अध्यक्त सादृश्य या साम्य होता है। एक परिवार की भाषाओं के उत्तरोत्तर उद्भव तथा विकास की एक बहुत लम्बी शृखला है। प्रयोक्ताओं के अनेक स्थानों में से गुजरने, विभिन्न भू-भागों में ठहरने तथा बसने के अनन्तर अर्थात् एक लम्बी अवधि, जो शताब्दियों तक की हो सकती है, के बाद जब कोई भाषा सुप्रतिष्ठ होती है, तब तक उसमें प्रयुज्यमान शब्दों की ध्वनियां बहुत कुछ परिवर्तित हो जातो हैं। साहसा उन्हें देखने पर यह कल्पना करना सम्भव नहीं होता कि अमुक भाषाओं का उसके साथ परिवार-गत सम्बन्ध है। पर, अन्य आधारों के कारण ध्वनि-सम्बन्धी प्रकट असमानता के अन्तरतम में समानता के बीज ढूढ़े जा सकते हैं।
एक परिवार की भाषाओं में प्रयुक्त होने वाले शब्दों में भी देश-भेद, काल-भेद तथा व्यक्ति-भेद आदि के कारण बहुत भिन्नता आ जाती है। उदाहरण के लिये फ्रेंच और हिन्दी को ले सकते हैं। यद्यपि दोनों का परिवार एक है, पर, दोनों के शब्दों में बहुत अधिक भिन्नता आ गयी है। इसके विपरीत एक अन्य निष्कर्ष फलित होता है, भिन्न परिवार की भाषाओं का प्रयोग करने वाले लोग स्थानिक दृष्टि से यदि निकट रहते हैं, तो उनमें दोनों ओर की भाषाओं के शब्दों का परस्परा आदान-प्रदान होता रहता है। इससे परिवार-गत भिन्नता के होते हुए भी उन दोनों भाषाओं के शब्द-समूह में कुछ सादृश्य आ जाता है। उदाहरण के लिए मराठी और कन्नड़ को लिया जा सकता है। ये दो भिन्न परिवारों की भाषाए हैं, परन्तु, ऐसा होते हुए भी उनके शब्दों में कहीं-कहीं समानता प्राप्त होती है। . एक परिवार की भाषाओं में सबसे अधिक समानता मूलक जो स्थायी तत्व है, वह है, व्याकरण या रचना-क्रम की समानता। किसी भी परिवार की भाषाओं में सतत विकास होता जाता है, जो स्वाभाविक है। विकास में परिवर्तन अवश्यम्भावी है। यह होते हुए भो किसी भाषा की व्याकरणिक आकृति या रचना-क्रम पर इसका प्रभाव बहुत धीमा होता है। भारोपीय परिवार
पालि व प्राकृत भाषाए आकृतिमूलक वर्गीकरण के अन्तर्गत माने गये 'चौदह भाषा
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