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विश्व भाषा - प्रवाहं
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भाषा और साहित्य ]
जो भी हो, उनमें से अनेक लोग अपने मूल स्थान से एक समूह के रूप में किसी दिशा की ओर प्रस्थान करते हैं । बहुत दूर चले जाने पर वे कहीं अपने आवास की अनुकूलता देखते हैं और रुक जाते हैं । उस भू-भाग की भाषा, जहां वे टिके हैं, उनकी अपनी भाषा से भिन्न है । कोई व्यक्ति या समुदाय, जहां भी रहता है, उसे वहां के निवासियों से सम्बन्ध रखना आवश्यक होता है । रहन-सहन, खान-पान, लेन-देन आदि में सम्बन्धित आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु वहां रहने वालों से समीपता बढ़ाये बिना काम नहीं चल सकता; अतः वह समागत समुदाय अपनी भाषा में कुछ ऐसे शब्दों, ध्वनियों आदि को स्वीकार कर लेता है, जो उस भू-भाग के निवासियों की भाषा के होते हैं । इस प्रकार एक मिली-जुली नई भाषा का जन्म हो जाता है, जो आने वाले लोगों की अपनी भाषा से कुछ-कुछ भिन्न हो जाती है, पर, उसका मौलिक रूप नष्ट नहीं होता । जो भेद आता है, वह अधिकांशतः बाह्य स्थूल कलेवर तक सीमित रहता है । इस नई मिली-जुली भाषा से आगत समुदाय अपना काम चलाने लगता है । उस प्रदेश के मूल निवासी भी उस ( नई ) भाषा द्वारा प्रयोजन की बातें लगभग समझने लगते हैं | साथ ही मूल निवासियों की भाषा पर भी उसका कुछ प्रभाव होता है ।
समय बीतता जाता है । जन संख्या बढ़ जाती है। बाहर से आकर बसे हुए लोगों को पुन: किसी और नये भू-खण्ड में जाने की आवश्यकता प्रतीत होने लगती है । उनमें से काफी सख्या में लोग एक समुदाय के रूप में आगे की ओर चल पड़ते हैं । चलते-चलते फिर किसी एक स्थान को सुविधाजनक समझ कर ठहर जाते हैं, वहां आबाद हो जाते हैं । वहां भी पिछली स्थिति की पुनरावृत्ति होती है। नवागत और उस भू-खण्ड के निवासी; दोनों की भाषाभों के मिले-जुले रूप की एक और नई भाषा बन जाती है । नवागत जनों और उस स्थान के वासियों के पारस्परिक व्यवहार, काम-काज आदि के लिए उसका उपयोग होता है, जिससे दोनों को अपना काम चलाने में सुविधा हो जाती है ।
द्वारा
नई भाषा पर कुछ विचार करें, जिसे नये प्रवासी बोलते हैं, जो प्राक्तन व्यक्तियों भी व्यवहृत होती है । एक भाषा वह थी, जिसका प्रयोग इन नये प्रवासियों के आदि-स्थान के पूर्वजों द्वारा होता था । दूसरी भाषा वह थी, जो मूल स्थान से चले समुदाय के पहले पड़ाव या आवास पर बनी | जैसा कि संकेत किया गया है, यह भाषा नवीन अवश्य थी, पर, मूल भाषा या आदि भाषा से सर्वथा भिन्न नहीं हो सकी थी। दूसरे आवास पर जो भाषा बनी, वह मूल भाषा से तथा प्रथम आवास में निर्मित भाषा से नया रूप लिये हुए थी, पर, वह भी आदि स्थान की भाषा तथा पहले आधास की भाषा से बिलकुल पृथक नहीं हो गयी थी । इतना अवश्य हुआ, जो स्वाभाविक था कि आदि स्थान की भाषा से वह कुछ अधिक भिन्न थी तथा पहले आवास की भाषा से कुछ कम भिन्न 1
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