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________________ भाषा और साहित्य ] विश्व भाषा-प्रवाह प्रयोगात्मक भाषाए जिन भाषाओं में अर्थ-तत्त्व और सम्बन्ध-तत्त्व का कोई योग नहीं होता, वे अयोगात्मक भाषाए' कहलाती हैं। इनमें शब्द के साथ विभक्ति, प्रत्यय, उपसर्ग आदि कुछ महीं जुड़ते । अभीप्सित अयं को ज्ञापित करने के लिए तद्बोधक शब्दों को एक विशेष क्रम से रख देना यथेष्ट है। उन्हीं शब्दों का स्थानिक क्रम बदल कर तत्सम्बन्ध अन्य अनेक आशय प्रकट किये जा सकते हैं। अयोगात्मक भाषा वर्ग में चीनी भाषा मुख्य है। उदाहरण के लिए उस भाषा के तीन शब्द हैं-नो, त, नि। गो का अर्थ मैं, त का मारना तथा नि !का तुम है। "मैं तुम को मारता हूँ"; यह प्रकट करने के लिए चीनी भाषा में नगो त नि कहना होगा। "तुम मुझे मारते हो" ऐसा कहने के लिए नि त न्गो कहना होगा। इसका तात्पर्य यह हुआ कि कर्ता कारक का भाव प्रकट करने केलिए केवल इतना-सा अपेक्षित हुआ कि जिसका कर्तृत्व ख्यापित करना है, उस शब्द को वाक्य के प्रारम्भ में रख दिया गया। कर्म कारक का भाव प्रकट करना हो तो मात्र इतना करणीय है कि कर्म-स्थानिक संज्ञा या सर्वनाम को क्रिया के बाद रख दिया जाए। कर्ता, कर्म आदि कारकों का भाव स्थान के एक निश्चित परिवर्तन से व्यक्त हो जाता है। अभिप्राय यह है कि जो शब्द जिस रूप में भाषा में है, उसमें कभी कोई परिवर्तन नहीं होता; विभक्ति, प्रत्यय तथा उपसर्ग आदि का उसके साथ कोई योग नहीं होता। चीनी भाषा का एक उदाहरण और लें। त लइ-वह आता है। यह वर्तमान-कालबोधक वाक्य है। इसे यदि भूतकाल का बनाना हो तो लइ क्रिया के रूप में कोई परिवर्तन नहीं होगा। इस क्रिया के आगे एक शब्द लिओन ( Lion ) जिसका अर्थ समाप्त है, और रख दिया जाएगा। तब वह वाक्य इस प्रकार होगा त लइ ( Lal ) लिओन अर्थात् उसने आना समाप्त किया, वह आया.। लिओन का अर्थ-तत्व है-समाप्त करना, पर, त लइ लिओन में वह सम्बन्ध-तत्व का द्योतक हो गया है। लिओन ( Lion ) के स्थान पर यदि लिआव ( Liao ) जिसका अर्थ पूर्ण या पूर्णता है, रख दिया जाए, तो भी भूतकाल का अर्थ प्रकट हो जाएगा। उपरोक्त उदाहरणों से सिद्ध होता है कि भिन्न-भिन्न शब्द सर्वथा अपरिवर्तित रहते हुए स्थान, प्रयोग आदि के एक विशेष क्रम के कारण अर्थ-तत्व और सम्बन्ध-तत्व का अपेक्षित निवाह भली-भांति कर पाते हैं । अयोगात्मक भाषाओं में सबसे अधिक महत्व वाक्य में पाब्दों के क्रम का है, पर, स्वर, लहजे ( Tone ) और निपात का भी अभिव्यक्ति में स्वाम है। संसार में अयोगात्मक भाषाए बहुत थोड़ी-सी हैं। अयोगात्मक भावानों में चीनी Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002622
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherArhat Prakashan
Publication Year1982
Total Pages740
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Literature
File Size14 MB
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