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इतिहास और परम्परा ]
समसामयिक धर्म - नायक
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लोग भी उनके प्रातिहार्य को असफल और अपने प्रातिहार्य को सफल करने के लिए उनके साथ हो लिए। शास्ता क्रमशः श्रावस्ती पहुँचे । तैथिक भी वहाँ पहुँचे। उन्होंने अपने भक्तों को सावधान किया । एक लाख कार्षापण एकत्रित किये। खेर के खम्भों से मण्डप बनाया । उसे नीले कमल से आच्छादित किया गया । प्रातिहार्य करने के लिए मिल-जुलकर सभी उस मण्डप में बैठ गये ।
राजा प्रसेनजित् कौशल शोस्ता के पास आया। उसने कहा - "भन्ते ! तैथिकों ने मण्डप बनाया है । मैं भी तुम्हारा मण्डप बनवाता हूँ ।"
"नहीं, महाराज ! हमारा मण्डप बनाने वाला दूसरा है ।"
“भन्ते ! मेरे अतिरिक्त यहां दूसरा कौन मण्डप बनायेगा ? " "शक्र देवराज, महाराज ! "
"भन्ते ! तो फिर प्रातिहार्य कहाँ करेंगे ?"
"गण्ड के आम के नीचे ।"
सर्वत्र यह बात विश्रुत हो गई । तैर्थिकों ने अपने भक्तों द्वारा एक योजन तक के आम्र-वृक्षों को उखड़वा दिया। कोई अमोला' भी वहाँ नहीं रहने पाया ।
शास्ता ने आषाढ़ पूर्णिमा को नगर में प्रवेश किया। राजा के उद्यानपाल गण्ड ने किसी झाड़ी की आड़ में एक बड़े पके आम को देखा। उसके गन्ध व रस के लोभ में मण्डरा हुए कौओं को उसने उड़ाया। हाथ में लेकर राजा को भेंट करने के उद्देश्य से चला । मार्ग में उसने शास्ता को देखा । सहसा उसका विचार उभरा; राजा इस आम को खाकर मुझे आठ या सोलह कार्षापण देगा । मेरे जीवन निर्वाह के लिए वह प्रर्याप्त नहीं होगा । यदि मैं इसे शास्ता को दूं, तो अवश्य ही यह मेरे लिए अमित काल तक हितप्रद होंगा। और वह उस आम को शास्ता के समीप ले गया । शास्ता ने उस आम का रस पिया और गण्ड से कहा-" इस गुठली को मिट्टी हटाकर यहीं रोप दो ।" उसने वैसा ही किया । शास्ता ने उस पर हाथ धोये । देखते-देखते पच्चास हाथ ऊँचा वृक्ष खड़ा हो गया । चारों दिशाओं में चार और एक ऊपर, पच्चास हाथ लम्बी पाँच महाशिखाएँ हो गईं। वृक्ष पुष्प व फलों से लद गया । प्रत्येक डाली पके हुए आमों से झुक गई। पीछे से आने वाले भिक्षु भी उन आमों को खाते हुए आगे बढ़े । राजा ने यह सारा उदन्त सुना। उसे बहुत आश्चर्य हुआ । इसे कोई काट न सके; इस उद्देश्य से उसने वृक्ष के चारों ओर पहरा लगवा दिया ।
आम्र-वृक्ष उद्यानपाल गण्ड के द्वारा रोपा गया था; अतः गण्डम्ब - रुक्ख ( गण्ड का आम्रवृक्ष) के नाम से प्रसिद्ध हो गया । तैर्थिकों ने भी उसके आम खाये । जूठी गुठलियाँ उस पर फेंकते हुए साश्चर्य कहा - "श्रमण गौतम गण्डम्ब के नीचे प्रातिहार्य करेगा ; यह सुन अमोलों को भी उखाड़ दिया था । यह कहाँ से आ गया ?" तैथिकों को और हतप्रभ करने के लिए इन्द्र ने कुपित होकर वायुदेव को आज्ञा दी - "तैर्थिकों के मण्डप को हवा से उखाड़ कर कूड़े के ढेर पर फेंक दो ।" सूर्यदेव को आज्ञा दी -- "सूर्य मण्डल को स्थिर कर तैथिकों को भीषण ताप दो ।" दोनों ने वैसा ही किया । इन्द्र ने वायुदेव को पुनः आदेश दिया "जोरों से आंधी चलाओ ।" उसने वैसा ही किया । पसीने से तरबतर हो रहे तैथिकों को धूल से ढँक दिया। सभी तांबे की चमड़ी वाले लगने लगे । वर्षा-देव को आदेश दिया
- "अब उन पर
१. उसी दिन पैदा हुआ आम का अंकुर ।
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