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इतिहास और परम्परा ]
परिशिष्ट-३ : बौद्ध पारिभाषित शब्दकोश
पारमिता - साधना के लिए दृढ़ संकल्प होकर बैठना, जिसमें अपने शरीर की सार-सम्भाल का सर्वथा परित्याग कर दिया जाता है । पारमिता दस होती हैं ।
पाराजिक-मारी अपराध किये जाने पर भिक्षु को सदा के लिए संघ से निकाल दिया
जाना ।
पिण्डपात — भिक्षु अपना पात्र लेकर गृहस्थ के द्वार पर खड़ा हो जाता है । उस समय वह दृष्टि नीचे किये और शान्त भाव से रहता है । घर का कोई व्यक्ति भिक्षा लाकर पात्र में रख देता है और वह झुक कर भिक्षु को प्रणाम करता है। मिक्षु आशीर्वाद देकर आगे बढ़ जाता है । पात्र जब पूर्ण हो जाता है तो भिक्षु अपने स्थान पर लौट आता है । निमंत्रण देकर परोसा गया भोजन मी पिण्डपात के अन्तर्गत है ।
पिण्डपातिक - माधुकरी वृत्ति वाला ।
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पुद्गल - व्यक्ति ।
पूर्व लक्षण - गृहत्याग के पूर्व उद्यान यात्रा को जाते हुए बोधिसत्त्व को प्रव्रज्यार्थ प्रेरित करने के लिए सम्पति ब्रह्मा द्वारा वृद्ध, रोगी, मृत और प्रव्रजित को उपस्थित करना ।
पृथग्जन - साधारण जन, जो कि आर्य अवस्था को प्राप्त न हुआ हो । मुक्ति-मार्ग की वे आठ आर्य अवस्थाएँ हैं— श्रोतापन्न मार्ग तथा फल, सकृदागामी मार्ग तथा फल, अनागामि मार्ग तथा फल, अर्हत् मार्ग तथा फल ।
प्रज्ञाप्ति-विधान ।
प्रज्ञा - शून्यता का पूर्ण ज्ञान । अविद्या का नाश ।
प्रज्ञा पारमिता - जिस प्रकार भिक्षु उत्तम, मध्यम तथा अधम कुलों में से किसी कुल को बिना छोड़े, भिक्षा माँगते हुए अपना निर्वाह करता है, उसी प्रकार पण्डित-जनों से सर्वदा प्रश्न पूछते हुए प्रज्ञा की सीमा के अन्त तक पहुँचना ।
प्रतीत्यसमुत्पाद - सापेक्ष कारणतावाद । प्रतीत्य - किसी वस्तु की प्राप्ति होने पर समुत्पाद, — अन्य वस्तु की उत्पत्ति । किसी वस्तु के उत्पन्न होने पर दूसरी वस्तु की उत्पत्ति । १. रूप, २. वेदना, ३. संज्ञा, ४. संस्कार और ५. विज्ञान - ये पाँच उपादन स्कन्ध हैं ।
प्रतिपाद - मार्ग, ज्ञान ।
प्रतिसंवित् प्राप्त - प्रतिसम्भिदा प्राप्त प्रभेदगत ज्ञान प्रतिसम्भिदा है । ये चार हैं :
१. अर्थ- प्रतिसम्भिदा - हेतुफल अथवा जो कुछ प्रत्यय से उत्पन्न है, निर्वाण, कहे गये का अर्थ, विपाक और क्रिया - ये पाँच धर्म 'अर्थ' कहलाते हैं । उस अर्थ का प्रत्यवेक्षण करने वाले का उस अर्थ में प्रभेदगत ज्ञान अर्थ- प्रतिसम्भिदा है ।
२. धर्म - प्रतिसम्भिदा - जो कोई फल को उत्पन्न करने वाला हेतु, आर्य-मार्ग भाषित, कुशल, अकुशल - इन पाँचों को 'धर्म' कहा जाता है। उस धर्म का प्रत्यवेक्षण करने वाले का उस धर्म का प्रभेदगत ज्ञान धर्मप्रतिसम्भिदा है ।
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