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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : १
देश में उत्पन्न हुए थे, इसलिये वैदेह; उनकी माता भी विदेह देश में उत्पन्न थी, इसलिए विदेहदत्तात्मज और विदेहों में श्रेष्ठ थे, इसलिये विदेहजात्यः कहे गये हैं । '
महाकवि भास ने अपने नाटक स्वप्नवासवदत्ता में राजा उदायन को 'विदेहपुत्र' कहा हैं; क्योंकि उसकी माता विदेह देश की राज-कन्या थी । जैन परम्परा के अनुसार चेल्लणा और उदायन की माता मृगावती सगी बहिनें थीं। वे वैशाली के राजा चेटक की कन्याएँ थीं । भगवान् महावीर की माता त्रिशला चेटक की बहिन थी। अतः विदेहदिन्न या विदेहपुत्त आदि विशेषण बहुत ही सहज और बुद्धिगम्य हैं । जैन आगमों में भी तो कूणिक को विदेहपुत्त कहा गया है। राईस डेविड्स के मतानुसार भी राजा बिम्बिसार के दो रानियाँ थीं - एक प्रसेनजित् की बहिन कोशल देवी तथा दूसरी विदेह्- कन्या । अजातशत्रु विदेह - कन्या का पुत्र था । ६
राजा बिम्बिसार जब धूम गृह में था, परिचारिका रानी कोशला था, यह अट्ठकथा बताती है । इन्सायक्लोपीडिया ऑफ बुद्धिज्म में परिचारिका रानी का नाम खेमा बताया गया है और उसे कोशल देश की राज कन्या भी कहा है। पर, यह स्पष्टतः भूल ही प्रतीत होती है । खेमा वस्तुतः मद्र देश की थी। लगता है, कोशल देवी के बदले खेमा का नाम दे दिया गया है । अमितायुर्ध्यान सूत्त तथा तिब्बती-परम्परा के अनुसार परिचारिका रानी का नाम 'वैदेही वासवी' था। डॉ० राधाकुमुद मुखर्जी कहते हैं -- "वैदेही वासवी की पहिचान चेलणा से की जा सकती है।" " बौद्ध परम्परा की इन विविधताओं में भी इससे परे की बात नहीं निकलती कि अजातशत्रु विदेह - राज कन्या का पुत्र था और इसीलिए वह 'वैदेहीपुत्त' कहलाता था । न जाने आचार्य बुद्धघोष को क्यों यह भ्रम रहा कि 'वैदेही' नाम 'पण्डिता' का है और अजातशत्रु कोशल देश की राज- कन्या कोशला का पुत्र था ।
नाम-भेद
जैन और बौद्ध दोनों परम्पराओं में नाम-भेद है । जैन परम्परा जहां उसे सर्वत्र 'कूणिक' कहती है, वहाँ बौद्ध परम्परा उसे सर्वत्र 'अजातशत्रु' कहती है । उपनिषद् " और
१. S. B. E., vol. XXII; p. 256; वसन्तकुमार चट्टोपाध्याय, कल्पसूत्र ( बंगला अनुवाद), पृ २७ ।
२. हिन्दू सभ्यता, पृ० १६८ ।
३. आवश्यक चूर्णि, भाग २, पत्र १६४ |
४. वही, भाग १, पत्र २५४ ।
५. भगवती सूत्र, शतक ७, उद्देशक ६, पृ० ५७६ ।
६. Buddhist India, p. 3.
Encyclopaedia of Buddhism, P. 316.
७.
८. थेरीगाथा, अट्ठकथा, १३६-४३ ।
६.
Rockhill : Life of Buddha, P. 63. १०. हिन्दू सभ्यता, पृ० १८३ ।
११. Dialogues of Buddha, vol II. P. 78.
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