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________________ २६८ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : १ देश में उत्पन्न हुए थे, इसलिये वैदेह; उनकी माता भी विदेह देश में उत्पन्न थी, इसलिए विदेहदत्तात्मज और विदेहों में श्रेष्ठ थे, इसलिये विदेहजात्यः कहे गये हैं । ' महाकवि भास ने अपने नाटक स्वप्नवासवदत्ता में राजा उदायन को 'विदेहपुत्र' कहा हैं; क्योंकि उसकी माता विदेह देश की राज-कन्या थी । जैन परम्परा के अनुसार चेल्लणा और उदायन की माता मृगावती सगी बहिनें थीं। वे वैशाली के राजा चेटक की कन्याएँ थीं । भगवान् महावीर की माता त्रिशला चेटक की बहिन थी। अतः विदेहदिन्न या विदेहपुत्त आदि विशेषण बहुत ही सहज और बुद्धिगम्य हैं । जैन आगमों में भी तो कूणिक को विदेहपुत्त कहा गया है। राईस डेविड्स के मतानुसार भी राजा बिम्बिसार के दो रानियाँ थीं - एक प्रसेनजित् की बहिन कोशल देवी तथा दूसरी विदेह्- कन्या । अजातशत्रु विदेह - कन्या का पुत्र था । ६ राजा बिम्बिसार जब धूम गृह में था, परिचारिका रानी कोशला था, यह अट्ठकथा बताती है । इन्सायक्लोपीडिया ऑफ बुद्धिज्म में परिचारिका रानी का नाम खेमा बताया गया है और उसे कोशल देश की राज कन्या भी कहा है। पर, यह स्पष्टतः भूल ही प्रतीत होती है । खेमा वस्तुतः मद्र देश की थी। लगता है, कोशल देवी के बदले खेमा का नाम दे दिया गया है । अमितायुर्ध्यान सूत्त तथा तिब्बती-परम्परा के अनुसार परिचारिका रानी का नाम 'वैदेही वासवी' था। डॉ० राधाकुमुद मुखर्जी कहते हैं -- "वैदेही वासवी की पहिचान चेलणा से की जा सकती है।" " बौद्ध परम्परा की इन विविधताओं में भी इससे परे की बात नहीं निकलती कि अजातशत्रु विदेह - राज कन्या का पुत्र था और इसीलिए वह 'वैदेहीपुत्त' कहलाता था । न जाने आचार्य बुद्धघोष को क्यों यह भ्रम रहा कि 'वैदेही' नाम 'पण्डिता' का है और अजातशत्रु कोशल देश की राज- कन्या कोशला का पुत्र था । नाम-भेद जैन और बौद्ध दोनों परम्पराओं में नाम-भेद है । जैन परम्परा जहां उसे सर्वत्र 'कूणिक' कहती है, वहाँ बौद्ध परम्परा उसे सर्वत्र 'अजातशत्रु' कहती है । उपनिषद् " और १. S. B. E., vol. XXII; p. 256; वसन्तकुमार चट्टोपाध्याय, कल्पसूत्र ( बंगला अनुवाद), पृ २७ । २. हिन्दू सभ्यता, पृ० १६८ । ३. आवश्यक चूर्णि, भाग २, पत्र १६४ | ४. वही, भाग १, पत्र २५४ । ५. भगवती सूत्र, शतक ७, उद्देशक ६, पृ० ५७६ । ६. Buddhist India, p. 3. Encyclopaedia of Buddhism, P. 316. ७. ८. थेरीगाथा, अट्ठकथा, १३६-४३ । ६. Rockhill : Life of Buddha, P. 63. १०. हिन्दू सभ्यता, पृ० १८३ । ११. Dialogues of Buddha, vol II. P. 78. Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
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