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इतिहास और परम्परा ]
एक अवलोकन
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उत्तरकालिक बौद्ध साहित्य ( अटुकथा आदि) में भी निगण्ठ व निगण्ठ नातपुत्त के विषय में विविध चर्चाएँ हैं । बुद्ध की श्रेष्ठता और महावीर की अश्रेष्ठता बताने का तो उनका हार्द है ही, परन्तु निम्नस्तर के आपेक्ष व मनगढन्त घटना-प्रसंगों से भी चर्चाएँ भरी-पूरी हैं । जैन उत्तरकालिक साहित्य - नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि आदि - गन्थों में भी बुद्ध की अवगणना सूचक उल्लेख नहीं मिलते। यह जैन साधकों व बौद्ध साधकों के मानसिक धरातल के अन्तर का सूचक है । जैन साधक सम्प्रदाय-चिन्ता से भी अधिक आत्म-कल्याण को महत्त्व देते रहे हैं । ईस्वी सन् के आरम्भ से जब चर्चा युग का आरम्भ हुआ, तब तो जैन साधक भी बौद्धों के विषय में उसी धरातल से बोलने व लिखने लगे । उत्तरवर्ती टीका - साहित्य व कथासाहित्य इस बात की स्पष्ट सूचना देते हैं ।
इन्हीं पहलुओं पर मुनि श्री नगराजजी ने अपने ग्रन्थ में विस्तार से चर्चा की है । गवेषकों व जिज्ञासुओं के लिए वह माननीय है ।
३-१२-६८ अनेकान्त विहार अहमदाबाद
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- पण्डित सुखलाल संघवी
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