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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड १
कणिक, चण्ड प्रद्योत, वत्सराज उदयन, सिन्धु सौबीर के राजा उद्रायण आदि राजाओं के सम्बन्ध से दोनों धर्म-शास्त्रों में अपने-अपने ढंग से ब्यौरा प्रस्तुत किया गया है। इनमें से कुछ जैन धर्म के तो कुछ बौद्ध धर्म के अनुयायी थे तथा कुछ दोनों धर्मों के प्रति सहानुभूति रखने वाले थे। मुनिश्री नगराजजी ने प्रस्तुत ग्रन्थ में इस विषय की भी समालोचना की है।
जैन और बौद्ध शास्त्रों में जब तात्कालीन राजनैतिक व सामाजिक स्थिति का सामान रूप से चित्रण उपलब्ध होता है तथा बौद्ध त्रिपिटक निर्ग्रन्थों के विषय में मुक्त रूप से सामग्री प्रस्तुत करते हैं तो एक जिज्ञासा होती है-जैन आगमों में बुद्ध और बौद्ध संघ के विषय में क्या कुछ सामग्री उपलब्ध होती है ? महावीर और बुद्ध दोनों समसामयिक युगपुरुष थे, यह एक निर्विवाद विषय है। फिर भी जैन आगमों में बुद्ध का नामोल्लेख तथा बुद्ध व बौद्ध भिक्षुओं से सम्बन्धित कोई घटना-प्रसंग उपलब्ध नहीं होता केवल सूयगडांग के कुछ एक पद्य बौद्ध मान्यताओं का संकेत देते हैं। वहाँ एक गाथा में बौद्धों को खणजोइणो बताया गया है तथा उसी गाथा में बौद्धों द्वारा पाँच स्कन्धों के निरुपण की चर्चा हैं। उससे अगली गाथा में भी बौद्धों के चार धातुओं का नामोल्लेख है । सूयगडांग की अन्य कुछ गाथाएँ भी इस ओर संकेत करती हैं। पर अंग-साहित्य का जो अंश निश्चित रूप से बहुत प्राचीन है, उसमें बोद्धों के उल्लेख का सर्वथा अभाव है; जबकि जैसे बताया गया-बौद्ध त्रिपिटकों में महावीर व उनके भिक्षओं से सम्बन्धित नाना घटना-प्रसंग उपलब्ध होते हैं । वे समग्र समुल्लेख महावीर व उनके भिक्षु-संघ की न्यूनता तथा बुद्ध व बौद्ध भिक्षु-संघ की श्रेष्ठता व्यक्त करने वाले हैं। प्रश्न होता है-जैन आगमों में बुद्ध की चर्चा क्यों नहीं मिलती तथा बौद्ध त्रिपिटकों में महावीर की चर्चा बहुलता से क्यों मिलती है ? क्या इसका कारण यह है कि महावीर व जैन भिक्ष अन्तम ख थे; वे आलोचनात्मक व खण्डनात्मक चर्चाओं से क्यों रस लेते व उन्हें क्यों महत्त्व देते ? यह यथार्थ है कि महावीर व जैन भिक्षु अपेक्षाकृत अधिक अन्तम ख थे और अपेक्षाकृत कम ही वे ऐसी चर्चाओं में उतरते । इसका तात्पर्य यह नहीं कि जैन आगमों में ऐसी चर्चा का सर्वथा अभाव है । महावीर के प्रतिद्वन्द्वी धर्मनायक गोशालक की चर्चा वहाँ प्रचुर मात्रा में मिलती है। गोशालक को कुसित बतलाने में वहां कोई कसर नहीं रखी गई है। महावीर के विरोधी शिष्य जमाली की भी विस्तृत चर्चा आगमों में है। विविध तापसों एवं उनकी अज्ञानपूर्ण तपस्याओं का विस्तृत विवेचन भी वहाँ मिलता है। महावीर और बुद्ध के विहार व वर्षावासों के समान क्षेत्र व समान ग्राम थे तथा अनुयायियों के समान गृह भी थे; फिर भी बुद्ध एवं बौद्ध भिक्षु ही आगमों में अचचित रहे, यह एक महत्त्व का प्रश्न बन जाता है।
इसका बुद्धिगम्य कारण यही हो सकता है कि महावी र बुद्ध से ज्येष्ठ थे। उन्होंने बुद्ध
१. पंच खंधे वयंतेगे, बाला उ खणजोइणो।
अण्णो अण्णण्णो णेवाहु हेउयं च अहेउयं ।।
सूयगडाँग, श्रुतस्कन्ध १, अध्ययन १, श्लोक १७ । २. पुढवी आऊ तेऊ य, तहा वाऊ य एगओ। चत्तारि धाऊणो रूवं एवमासु आवरे ।।
-सूयगडांग, श्रुतस्कन्द १, अ० १, श्लोक १८ । ३. सूयगडांग सूत्र, श्रु० २, अ० ६, श्लोक २६-३०; देखें प्रस्तुत ग्रन्थ, पृ० ६-१२ ।
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