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इतिहास और परम्परा]
एक अवलोकन
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और कायदण्ड के सम्बन्ध से चर्चा होती है ।' तपस्या से निर्जरा का विधान जैन परिभाषा की दृष्टि से भी यथार्थ हुआ है। दण्ड, वेदनीय कर्म आदि शब्द-प्रयोग जैन सिद्धान्त में भी प्रयुक्त होते रहे हैं । आश्रव, अभिजाति (लेश्या)३, लोक की सान्तता-अनन्तता, अवितर्कअविचार समाधि (ध्यान), क्रियावाद-अक्रियवाद, पात्र-अपात्र दान आदि विषयों की चर्चा तत्वज्ञान की दृष्टि से जैन दृष्टिकोण के अभिमत को प्रस्तुत करती है। जैनों के सर्वज्ञता-वाद का अनेक स्थलों पर स्पष्ट उल्लेख व समीक्षा प्राप्त होती है। निगण्ठ नातपुत्त के व्यक्तित्व की समीक्षा करने वाले कुछ समुल्लेख मिलते हैं, जिनमें बुद्ध की तुलना में उनको न्यून बताने का प्रयत्न किया गया है।
महावीर के भिक्षु-संघ व श्रावक-संघ की स्थिति का चित्रण कुछ एक प्रकरणों में किया गया है । नालन्दा में दुर्भिक्ष के समय महावीर अपने बृहत् भिक्षु-संध सहित वहाँ ठहरे हुए थे, ऐसा उल्लेख मिलता है। महावीर के निर्वाण के पश्चात् संघ में हुए कलह या फूट का
। कुछ प्रकरणों में पाया जाता है। महावीर के श्रावक-संघ की अपेक्षा बुद्ध का संघ उनके प्रति अधिक आश्वस्त था, ऐसा भी बताने का प्रयत्न किया गया है।१२
इस प्रकार बौद्ध त्रिपिटकों में जैन आचार, तत्त्वज्ञान, महावीर का व्यक्तित्व, उनकी संघीय स्थिति आदि का एक बृहत् ब्योरा प्रस्तुत हुआ है, जो ऐतिहासिक दृष्टि से एवं शोध व समीक्षा की दृष्टि से बहुत महत्व का है।
ऐतिहासिक सामग्री की दृष्टि से जिस प्रकार बौद्ध त्रिपिटक तात्कालीन राजाओं का विवरण प्रस्तुत करते हैं, उसी प्रकार जैन आगम भी करते हैं । श्रेणिक बिम्बिसार. अजातशत्रु
१. मज्झिम निकाय, उपालि सुत्त (प्र० सं० २)। २. अंगुतर निकाय, वप्प सुत्त (प्र० सं० १२)। ३. अंगुत्तर निकाय, छक्क निपात (प्र० सं० २८)। ४. अंगुत्तर निकाय, नवक निपात (प्र० सं० ११) । ५. संयुत्त निकाय, गामणी संयुत्त (प्र० सं०८)। ६. विनय पिटक, महावग्ग (प्र० सं० १)। ७. मज्झिम निकाय, चूल सच्चक सुत्त (प्र० सं० २६) । ८. (क) मज्झिम निकाय, सन्दक सुत्त (प्र० सं० ३०)।
(ख) मज्झिम निकाय, चूल सकुलुदायि सुत्त (प्र० सं० १३)।
(ग) अंगुत्तर निकाय, तिक निपात (प्र० सं० १०) ६. (क) सुत्त निपात, घम्मिक सुत्त (प्र० सं० ३४)।
(ख) दीघ निकाय, महापरिनिव्वाण सुत्त (प्र० सं० २५)। (ग) संयुत्त निकाय, दहर सुत्त (प्र० सं० २४)।
(घ) सुत्त निपात, सभिय सुत्त (प्र० सं० २३)। १०. संयुत्त निकाय, गामणी संयुक्त (प्र० सं० ७)। ११. (क) मज्झिम निकाय, सामगाम सुत्त (प्र० सं० १४)।
(ख) दीध निकाय, पासादिक सुत (प्र० सं० १५)।
(ग) दीघ निकाय, संगीतिपर्याय सुत्त (प्र० सं० १६)। १२. मज्झिम निकाय, महासकुलुदायि सुत्त (प्र० सं० २६) ।
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