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भूमिका
मुनि श्री नगराजजी एक सुविख्यात लेखक हैं। जैन दर्शन और जैन आचार का उनका अपना मौलिक ज्ञान है । उनकी विद्वता स्वभाव-सिद्ध है। उनमें अपने अध्ययन और ज्ञान के क्षितिज को विस्तृत करने की प्रबल उत्कण्ठा है। जैन दर्शन की पृष्ठभूमि में व आधुनिक विचार-प्रणालियों के सन्दर्भ में अणुव्रत-जीवन-दर्शन को जन-जन के लिए बुद्धिगम्य बनाने के लिए वे उत्कट रूप से प्रयत्नशील हैं। आप उन विरल लेखकों में से एक हैं, जिन्होंने जैन विचार का आधुनिक विज्ञान के आलोक में अध्ययन किया है।
जैसे कि शीर्षक से सूचित होता है, मुनि श्री नगराजजी का प्रस्तुत ग्रन्थ “आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन" जैन आगमों अर्थात् गणिपिटकों तथा बौद्ध त्रिपिटकों के एक सर्वाङ्गीण अध्ययन के रूप में है । इसमें दोनों परम्पराओं के समान विषयों की तुलना के द्वारा हमारा ध्यान केन्द्रित किया गया है। बुद्ध और महावीर दो महान् समसामयिक व्यक्ति थे । उस युग में पूरण काश्यप, मक्खली गोशाल, अजित केशकम्बली, प्रक्रुध कात्यायन, संजय वेलट्ठिपुत्र ; ये अन्य भी धर्मप्रवर्तक थे, ऐसा त्रिपिटक बताते हैं। जैन शास्त्र भी उनके विषय में कुछ अवगति देते हैं । गोशालक उस युग के एक उल्लेखनीय धर्मनायक थे। किन्तु, दुर्भाग्य से उनकी मान्यताएँ प्रत्यक्षतः हमारे तक नहीं पहुंच रही हैं। वर्तमान युग में आजीवक सम्प्रदाय का कोई भी धर्म-शास्त्र उपलब्ध नहीं है। इस सम्बन्ध में हम जो कुछ जानते हैं, वह जैन और बौद्ध शास्त्रों पर ही आधारित है। मुनि श्री नगराजजी इन धर्मप्रवर्तकों तथा उनके सिद्धान्तों के विषय में परिपूर्ण जानकारी देते हैं।
यह एक सुविदित तथ्य है कि महावीर और बुद्ध के निर्वाण-काल के विषय में बहुत सारे परस्पर विरोधी प्रमाण उपलब्ध होते हैं तथा इस विषय में अनेक विवादपूर्ण पारस्परिक मान्यताएँ प्रचलित हैं। विद्वानों में भी इस विषय पर अत्यधिक मतभेद है। मुनि श्री नगराजजी ने इस सम्बन्ध में उपलब्ध समग्र सामग्री का एवं विभिन्न परम्पराओं का सर्वेक्षण किया है। उन्होंने इनके मूलभूत उद्गम आदि के विषय में भी यथोचित रूप से स्पष्टता की है। उनका निर्णय है कि महावीर ५२७ ई० पू० में तथा बुद्ध ५०२ ई० पू० में निर्वाण-प्राप्त हुए थे। प्रस्तुत निर्णय अपने आप में सब प्रकार संगत लगता है। आगे उन्होंने महावीर और बुद्ध के जीवन-सम्बन्धी विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत एवं सर्वाङ्गीण प्रकाश डाला है। तदनन्तर दोनों के प्रमुख शिष्य-शिष्याओं की संक्षिप्त जीवनी दी गई है। इसके बाद महावीर और बुद्ध के समकालीन राजा; जैसे श्रेणिक बिम्बिसार, कूणिक, चण्डप्रद्योत, प्रसेनजित्, चेटक आदि पर बहुत ही श्लाघनीय प्रकाश डाला गया है । अगले प्रकरणों में शास्त्रों में उपलब्ध
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