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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : १
महावीर का निर्वाण पटना जिले के अन्तर्गत राजगृह के समीपस्थ पावा में हुआ था । अतः जिस प्रकार पावा काल्पनिक है, उसी तरह महावीर के निर्वाण की बात भी काल्पनिक हो सकती है । डा० जेकोबी का यह भी कहना है : "महावीर के मृत्यु-स्थान-विषयक जैनों की परम्परा के विषय में शंका करना उचित नहीं है ।"
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बौद्धों ने जिस पावा का उल्लेख किया है, मान लें कि नाम-साम्य के कारण उन्होंने वह भूल कर दी । ऐसी भूलों का होना असम्भव नहीं है । पर इसका तात्पर्य यह नहीं होता कि निर्वाण की बात ही सारी मनगढ़ंत है । वस्तुस्थिति तो यह है कि डा० जेकोबी ने जैन परंम्परा में मान्य जिस पावा के विषय में शंका उपस्थित करने की भी वर्जना की है, ऐतिहासिक आधारों पर वह शंकास्पद ही नहीं, निराधार ही बन जाने लगी है । परम्परा और इतिहास में बहुघा आकाश-पाताल का अन्तर पड़ जाता है। महावीर का जन्म-स्थान भी परम्परागत रूप से लिछूयाड़ के निकटस्थ क्षत्रियकुण्ड माना जाता है । पर वर्तमान इतिहास की शोध ने उसे नितान्त अप्रमाणित कर दिया है। ऐतिहासिक धारणा के अनुसार तो महावीर का जन्म स्थान पटना से २७ मील उत्तर में मुजफ्फरपुर जिले का बसाढ़ ही क्षत्रियकुण्डपुर है । इस प्रकार परम्परागत स्थान गंगा से सुदूर दक्षिण की ओर है, जबकि इतिहास - सम्मत स्थान गंगा के उत्तरी अंचल में है । पावा के सम्बन्ध में भी लगभग यही बात है । परम्परा सम्मत पावा दक्षिण बिहार में है और वहाँ के भव्य मन्दिरों ने उसे एक जैन तीर्थ बना दिया है। इतिहास इस बात में सम्मत नहीं है कि वह पावा यहां हो । भगवान् महावीर के निर्वाण-अवसर पर मल्लों और लिच्छवियों के अठारह गण राजा उपस्थित थे । ' ऐसा उत्तरी बिहार में स्थित पावा में अधिक सम्भव हो सकता है; क्योंकि उधर ही उन लोगों का राज्य था । दक्षिण बिहार की पावा तो नितान्त उनके शत्रु- प्रदेश में थी । अपने ज्वलन्त शत्रु मागधों के प्रदेश में वे कैसे उपस्थित हो सकते थे ? पं० राहुल सांकृत्यायन भी इस तथ्य की पुष्टि करते हैं। उनका कहना है- भगवान् महावीर का निर्वाण वस्तुत: गंगा के उत्तरी अंचल में आई हुई पावा में ही हुआ था, जो कि वर्तमान में गोरखपुर जिले के अन्तर्गत 'पपहुर' नामक ग्राम है । जैन लोगों ने प्राचीन परम्परा को भूलकर पटना जिला अन्तर्गत पावा को अपना लिया है । और भी अनेकों इस धारणा से इतिहासज्ञ सहमत हैं 13
तात्पर्य हुआ, डा० जेकोबी जिस पावा के आधार पर निर्वाण सम्बन्धी प्रकरणों को अययार्थ मानते हैं, वही पावा इतिहास सम्मत होकर उन निर्वाण सम्बन्धी प्रकरणों की सत्यता को और पुष्ट कर देती है ।
तात्कालिक स्थितियों के सम्बन्ध में आगम-त्रिपिटक
डा० जेकोबी का यह कथन भी पूर्ण यथार्थ नहीं है कि जैन आगम त्रिपिटकों की अपेक्षा तात्कालिक स्थितियों का अधिक विवरण प्रस्तुत करते हैं । उन्होंने इस अभिमत की पुष्टि के
१. कल्पसूत्र, १२८ ।
२. दर्शन दिग्दर्शन, पृ० ४४४, टि० ३ ।
३. श्री नाथूराम प्रेमी ने भी ऐसी ही सम्भावना व्यक्त की है। देखें, जैन साहित्य और इतिहास, पू० १८६ ।
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