SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : १ अन्तिम लेख श्री कस्तूरमल बांठिया के कथनानुसार डा० जेकोबी का यह अन्तिम लेख है और इसमें एतद्विषयक अपनी परिवर्तित धारणा उन्होंने व्यक्ति की है। आश्चर्य यह कि डा० जेकोबी ने 'बुद्ध और महावीर का निर्वाण' इस सुविस्तृत लेख में यह कहीं भी चर्चा नहीं की कि उनका एतद्विषयक अभिमत पहले यह था और अब यह है तथा वह इन कारणों से परिवर्तित हुआ है। उन्होंने तो केवल अपने लेख के प्रारम्म में कहा है : “एक पक्ष यह कहता है, परम्परा से चली आ रही और प्रमाणों द्वारा प्रस्थापित इतिहास की धारणा के अनुसार गौतम बुद्ध महावीर से कितने ही वर्ष पूर्व निर्वाण-प्राप्त हो गए थे। दूसरा पक्ष यह कहता है, बौद्ध शास्त्रों में जो उल्लेख मिलते हैं, उनसे यह जाना जाता है कि महावीर बुद्ध से थोड़े ही समय पूर्व कदाचित् निर्वाण-प्राप्त हुए थे। इस प्रत्यक्ष दीखने वाले विरोध में सत्य क्या है, इसी शोध के लिए यह लेख लिखा जा रहा है।"२ यहां यह ध्यान देने की बात है कि अपने प्राक्तन मत को अपने अनूदित ग्रन्थ की भूमिकाओं में वे लिख चुके थे और उनके सामने वे प्रकाशित होकर भी आ गई थीं; फिर भी प्रस्तुत निबन्ध में वे अपनी उस अभिव्यक्ति का सोल्लेख निराकरण नहीं करते; यह क्यों ? हो सकता है, किन्हीं परिस्थितियों में ऐसा हो गया हो। यहां हमें उसकी छानबीन में नहीं जाना है। यहां तो हमें यही देखना है कि उन्होंने अपने इस अभिनव मत को किन आधारों पर सुस्थिर किया है तथा वे आधार कहां तक यथार्थ हैं। डा० जेकोबी एक गम्भीर समीक्षक थे, इसमें कोई सन्देह नहीं। किसी भी तथ्य को नाना कसौटियों पर कसते रहना तो किसी भी सत्य-मीमांसक का अपना कार्य है ही। डा० जेकोबी के लेख का सार उक्त लेख को आद्योपांत पढ़ जाने से स्पष्ट लगने लगता है कि यह लेख केवल बुद्ध और महावीर की निर्वाण-तिथियों के सम्बन्ध से ही नहीं लिखा गया। लेख का एक प्रमुख ध्येय तात्कालिक राजनैतिक स्थितियों पर भी प्रकाश डालना है। उनके मूल लेख का शीर्षक 'बुद्ध और महावीर का निर्वाण एवं उनके समय की मगध की राजकीय स्थिति' भी यही संकेत करता है। निर्वाण-तिथियों के सम्बन्ध में जितना उन्होंने लिखा है, वह भी विषय को निर्णायक स्थिति तक पहुँचाने के लिए अपर्याप्त ही नहीं, कुछ अस्वाभाविक भी है। डा० जेकोबी का बुद्ध को बड़े और महावीर को छोटे मानने में प्रमुख प्रमाण यह है कि चेटक, कोणिक (अजातशत्रु) आदि का युद्ध-सम्बन्धी विवरण जितना बौद्ध-शास्त्रों में मिलता है, जैन-आगमों में उससे आगे का भी मिलता है । बौद्ध-शास्त्रों में अजातशत्रु का अमात्य वस्सकार बुद्ध के पास वज्जियों के विषय की योजना ही प्रस्तुत करता है, तो जैन-आगमों में चेटक और कोणिक के महाशिलाकंटक और रथमुशलसंग्राम व वैशाली-प्राकार-भंग तक का स्पष्ट विवरण १. श्रमण, वर्ष १३, अंक ६, पृ० ६ ; श्री बांठिया द्वारा लिखित-लेख की पूर्व पीठिका। २. श्रमण, वर्ष १३, अंक ६, पृष्ठ ६, १०। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002621
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1987
Total Pages744
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & History
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy