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[ पट्टावली-पराग
स्पर्श अथवा उष्ण-स्पर्श का। परन्तु मैं तो दो क्रियाओं का अनुभव कर रहा हूँ, इसलिये एक समय में एक नहीं, दो क्रियाओं का अनुवेदन होता है। प्राचार्य गंग की बात सुनकर आचार्य धन गुप्त ने कहा : “पार्य, ऐसी प्रज्ञापना न कर, एक समय में दो क्रियाओं का वेदन नहीं होता। क्योंकि समय और मन बहुत सूक्ष्म होते हैं, वे भिन्न-भिन्न होते हुए भी स्थूलबुद्ध मनुष्य को एकसमयात्मक प्रतीत होते हैं, उत्पलपत्रशतवेधकी तरह। इत्यादि प्रकार से गंग को समझाने पर भी जब उसने अपना हठवाद न छोड़ा तब उसे श्रमणसंघ से पृथक् कर दिया। वह चलता हुआ राजगृह पहुंचा। वहां पर “महातपोतीर प्रभव' नामक एक बड़ा पानी का झरना हैं, उसके निकट "मणिनाग" नामक नागजाति के देव का चैत्य है । प्राचार्य गंग "मणिनाग चैत्य' के निकट ठहरे और एक समय में दो क्रियानों के अनुभव को बात कहने लगे, तब मणिनाग ने उस परिषद् के मध्य में कहा : "अरे दुष्ट शिष्य ! अप्रज्ञापनीय का प्रज्ञापन कैसे करता है ? इसी स्थान में ठहरे हुए भगवान् वर्धमान स्वामी ने कहा है : एक समय में एक ही क्रिया का वेदन होता है, क्या तू उनसे भी बढ़कर हो गया ? छोड़ दे इस वाद को। तेरे इस दोष से मुझे शिक्षा करनी न पड़े इसलिए कहता हूँ। मणिनाग की धमकी और उपपत्ति से समझ कर गंग बोला : हम चाहते हैं कि गुरु के पास जाकर अपनी इस विरुद्ध प्ररूपणा की क्षमा मांग लें। .
(६) त्रैराशिक - रोहगुप्त
महावीर को सिद्धि प्राप्त हुए ५४४ वर्ष व्यतीत होने पर "अन्तरंजिका नगरी" में त्रैराशिक दर्शन उत्पन्न हुआ, इस दर्शन की उत्पत्ति का विशेष वर्णन इस प्रकार है:
अन्तरंजिका नगरी के बाहर “भूतगुहां'' नामक चैत्य था, जहां पर श्रीगुप्त नामक प्राचार्य ठहरे हुए थे। उस नगर के तत्कालीन राजा का नाम था "बलश्रो"। "स्थविर श्रीगुप्त'' का "रोहगुप्त' नामक शिष्य था। वह अन्य गांव में ठहरा हुआ था। एक समय अपने अध्यापक श्रीगुप्त को
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