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________________ कुन्दकुन्द के गुरु पृष्ठ ६८ से १६ प्राचार्य कुन्दकुन्द का सत्तासमय १०० १०७ भट्टारक जिनसेनसूरि का शकसंवत् कलचूरी संवत् है १०८ १०६ आधुनिक दिगम्बर समाज के संघटक प्राचार्य कुन्दकुन्द - और भट्टारक वीरसेन ११० ११४ दिगम्बर सम्प्रदाय की पट्टावलियां ११५ १२४ नन्दीसंघ द्रमिलगण अरुङ्गलान्वय की पट्टावलियां १२४ १२४ देशीयगण के प्राचार्यो को परम्परा १२४ १२५ लेखनं० ५४ में निद्दिष्ट आचार्यपरम्परा १२५ १२६ मूलसंघ के देश यगण की पट्टावली १२७ मूलसंघ के नन्दीगण की पट्टावली १२७ १२६ उपसंहार १२८ १२६ द्वितीय परिच्छेद [ तपागच्छीय पट्टाबलियो] श्री तपागच्छ-पट्टावलीसूत्र १३३ १५५ तपा गरमपति-गुण पद्धति १५६ १६२ तपागच्छ पट्टावली सूत्रवृत्ति अनुसंधितपूर्ति दूसरी १६३ १६६ पट्टावलीसारोद्धार १६७ १६८ श्रो बृहत् पौषधशालिक पट्टावली १६६ १७३ बृहत् पौषधशालीय आचार्यों को पट्ट-परम्परा १७४ १८१ लघु पौषधशालिक पट्टावली १८२ १८६ तपागच्छ कमल-कलश शाखा की पट्टावली राजविजयसूरि गच्छ की पट्टावली १८८ श्री रत्नविजयसूरिजो और इनकी परम्परा विजयदेवसूरि के सामने नया प्राचार्य क्यों बनाया ? विजयानन्दसूरि गच्छ की परम्परा (१) विजयानन्दसूरि शाखा की पट्टावली (२) विजय आनन्दसूरि शाखा की पट्टावली (३) विजपानन्दसूरि शाख वलो (४) م १८७ م م . .. له لے لے سمسم ..... Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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