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________________ श्वेताम्बर जैनों के आगम दिगम्बर जैन-लेखक कहा करते हैं कि श्वेताम्बर मतप्रवर्तक जिन चन्द्र ने अपने प्राचरण के अनुसार नये यास्त्र बनाये और उनमें स्त्रीमुक्ति, केवलिभुक्ति और महावीर का गर्भापहार आदि नई बातें लिखो। इस प्राक्षेप के आर हम शास्त्र र्थ करना नहीं चाहते, क्योंकि "केवलि भुक्ति' का निषेध पहले-पहल दिगम्बराचार्य देवनन्दी ने किया है. जो विक्रम की छठी सदी के विद्वान् ग्रन्थकार माने जाते हैं। "स्त्रोमुक्ति" का निषेध दशवीं शती के दिगम्बर ग्रन्थकारों ने किया है। इनके पहले के किसी भी दिगम्बर जैन ग्रन्थकार ने उक्त दो बातों का निषेध नहीं किया था, इसलिए इन बातों की प्रामाणिकता स्वयं सिद्ध है। श्वेताम्बर जैन-संघमान्य वर्तमान आगमों की प्रामाणिकता और मौलिकता के विषय में हम यहां कुछ भी नहीं लिखेंगे, क्योंकि हमारे पहले हो जैन आगमों के प्रगाढ़ अभ्यासी डॉक्टर हर्मन जेकोबि जैसे मध्यस्थ यूरोपियन स्कॉलरों ने ही इन आगमों को वास्तविक "जैन-श्रुत" मान लिया है और इन्हीं के आधार से जैन धर्म की प्राचीनता सिद्ध करने में वे सफल हुए हैं। इस बात को बाबू कामताप्रसाद जैन जैसे दिगम्बर सम्प्रदायी विद्वान् भी स्वीकार करते हैं। वे "भगवान महावीर" नामक अपनी पुस्तक में लिखते हैं : “जर्मनी के डॉक्टर जैकोबिसदृश विद्वानों ने जैनशास्त्रों को प्राप्त किया और उनका अध्ययन करके उनको सभ्य संसार के समक्ष प्रकट भी किया कि "ये श्वेताम्बराम्नाय के अंगग्रन्थ हैं। और डॉ० जैकोबि इन्हीं को वास्तविक जैन श्रुतशास्त्र समझते हैं।" हम यह दावा भी नहीं करते कि जैनसूत्र जिस रूप में महावीर के मुख्य शिष्य गणधरों के मुख से निकले थे, उसी रूप में आज भी हैं और, ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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