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________________ प्रथम परिच्छेद ] क्रमांक नाम नि. से तक २६ भूतदिन ८०३-६८२ २७ कालकाचार्य ९८२-८६३ वि० स० ४३३-५१२ ५१२-५२३ ई० स० ३७६-४५५ ४५५-४६६ तक ॥ * श्री देवद्धिगणि क्षमाश्रमण की गुवोवली १ सुधर्मा ११ आर्य दिन्न २ जम्बू १२ आर्य सिंहगिरि ३ प्रभव १३ आर्य वज्र ४ शय्यम्भव १४ आर्य रथ ५ यशोभद्र १५ प्राय पुष्यगिरि ६ संभूतविजय १६ फल्गुमित्र भद्रबाहु १७ आर्य धनगिरि ७ स्थूलभद्र १८ आर्य शिवभूति ८ महागिरि तथा १६ आर्यभद्र सुहस्ती २० आर्य नक्षत्र ६ सुस्थित-सु प्रतिबुद्ध २१ प्रार्य रक्ष १० आर्य इन्द्रदिन्न २२ प्रार्य नाग २३ जेष्ठिल २४ आर्य विष्णु २५ ार्य कालक २६ संपलित तथा आर्यभद्र २७ आर्य वृद्ध २८ आर्य संघपालित २६ आर्य हस्ती ३० प्रार्य धर्म ३१ आर्य सिंह ३२ आर्य धर्म ३३ प्रार्य शाण्डिल्य ३४ देवद्धिगणि * १५ वें आर्य धर्म से विक्रमपूर्व का समय समाप्त होकर विक्रम के पश्चात् का समय प्रारम्भ होता है और १६ वें समुद्रगुप्त से ई० पू० का काल समाप्त होकर बाद का प्राएभ होता है। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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