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प्रथम-परिच्छेद ]
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सैकड़ों प्रतीच्छकों से वन्दित हैं, उन दूष्य गरिण के चरणों में नमन करता हूँ ॥४०॥४१॥४२॥'
"जे अन्न भगवन्ते, कालिप्रसुयप्राणुरोगिए धीरे । ते परणमिऊरण सिरसा, नारणस्स परूवरणं वोच्छं ॥४३॥"
अर्थ : 'उक्त अनुयोगधरों के अतिरिक्त जो कालिक श्रुत के अनु. योगधारी धीर पुरुष हैं, उन सब भगवन्तों को सिर से प्रणाम कर ज्ञान का प्ररूपण करूंगा ।४३।'
कला-स्थविरावली का वर्णन शाण्डिल्य तक सर्वप्रथम दिया है । उसके बाद माथुरी वाचनानुयायी स्थविरावलीगत अनुयोगधरों की नामावली बताने वाली मौलिक गाथाएँ लिखकर उनकी चर्चा की है। माथुरी के बाद वालभी वाचनानुगत स्थविरों का निरूपण करने वाली गाथाएं समयप्रतिपादन के साथ लिखी हैं। इन सब बातों को कोष्टकों के रूप में लिख कर अन्त में स्थविर देवद्धिगरिण क्षमाश्रमण की गुर्वावली का कोष्टक देकर इस लेख को पूरा करेंगे।
माथुरो-वाचनाबुगत स्थविर-क्रम
१ सुधर्मा २ जम्बू ३ प्रभव ४ शय्यम्भव ५ यशोभद्र ६ सम्भूतविजय ७ भद्रबाहु ८ स्थूलभद्र ६ महागिरि
१० सुहस्ती ११ बलिस्सह १२ स्वाति १३ श्यामार्य १४ शाण्डिल्य १५ समुद्र १६ मंगू १७ नन्दिल १८ नागहस्ती
१६ रेवतिनक्षत्र २० ब्रह्मद्वीपिकसिंह २१ स्कन्दिलाचार्य २२ हिमवन्त २३ नागार्जुन वाचक २४ भूतदिन २५ लोहित्य २६ दूष्यगणि २७ देवद्धिगणि
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