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स्थविरावली की प्राचीनता
उपर्युक्त कल्प-स्थविरावली में स्थविरों के सत्ता-समय के सम्बन्ध में कुछ भी सूचन नहीं मिलता, अपितृ भिन्न गाथाओं में इनका समय निरूपण किया हुअा है। युगप्रधानों की पट्टावलियां भी दो प्रकार की मिलती हैं, एक माथुरीवाचनानुयायिनी और दूसरी वालभोवाचनानुयायिनी। माथुरी वाचनानुयायिनी पट्टावली में युगप्रधानों के नाम मात्र दिये हुए हैं, उनका समयक्रम नहीं लिखा, तब वालभीवाचनानुयायिनो पट्टावली में स्थविरों के नामों के साथ उनके युगप्रधानत्व पर्याय का समय भी दिया हुआ है। इन गाथानों में गोविन्द वाचक का नाम भी सम्मिलित किया है और आर्य सुहस्ती का नाम कम करके आर्य महागिरि के बाद बलिस्सह से प्रारम्भ कर देवद्धि गरिण तक २७ नामों की सूची दी है। इस सूची में आर्य सुहस्ती को छोड़ देना और गोविन्द-वाचक को ग्रहण करना ये दोनों बातें अयथार्थ हैं। यह पट्टावली गुरुपरम्परा नहीं किन्तू वाचक स्थविर-परम्परा है। प्रार्य महागिरि के बाद आर्य सुहस्ती वाचक रहे हुए हैं, जब कि गोविन्द वाचक का नाम नन्दि-स्थविरावली में प्रक्षिप्त गाथा में पाया है, मूल में नहीं। इसलि९ हमने इस माथुरी वाचना के अनुयायी स्थविरों के नामों में आयं सुहस्ती का नाम कायम रक्खा है और "गोविन्द वाचक" नाम हटा दिया है। इस प्रकार “बलिस्सह को ११वां वाचक मानने से देवद्धि क्षमाश्रमरण तक के वाचकों की संख्या २७ हो जाती है। पहले हम माथुरीवाचनानुयायिनी स्थविरावली के नाम बताने वाली शाखाओं को उद्धृत करेगे, आर्य महागिरि के परवर्ती स्थविर वाचकों के नाम निम्न प्रकार से हैं :
"सूरि बलिस्सह साई, सामज्जो संडिलो य जीयधरो। अज्जसमुद्दो मंगू, नंदिल्लो नागहत्थी य ॥
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