________________
चतर्थ- परिच्छेद 1
[ ५१७
पुत्र भ० रूपजी ने अपने साधर्मी भाइयों और बहिनों के चखला, नौकाय वाली, पौषध आदि का वेश और बाइयों को साड़ी नौकार वाली, एवं हाथी दांत के डांडी काले चखले प्रभावना में दिए, इस वर्ष में शाहश्री ने संस्कृत में "वीरतरंग " और "अजिततरंग" बनाये - जिनका श्लोक प्रमाण अनुमानतः दस हजार है और शाह कल्याण ने "धन्य विलास” की रचना की जिसकी ढालें ४३ हैं तथा "युगप्रधान पट्टावली" की टीका संस्कृत में बनायी तथा " युगप्रधान वन्दना" प्रमुख श्रनेक ग्रन्थों की रचना की, इस प्रकार कडुवागच्छ मत की पट्टावली अष्टम पट्टधर विराजमान शाह श्री तेजपाल के प्रसाद से शाह कल्याण ने सं० १६८५ के पौष सुदि पूरिंगमा पुष्य नक्षत्र के योग में बनाई ।
( कडुआ मत की लघुपट्टावली के आधार से अन्तिम दो नाम )
शाह कल्याण विद्यमान, १६८५ ।
ε.
१०. शाह भल्लू ।
११. शाह भाग ।
Jain Education International 2010_05
समाप्त
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org