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[पट्टावलो-पराग
और बाकी सबको श्रीफल देकर आपस में समाधान किया, बाद में थराद के संघ ने राधनपुर में सार्मिक वात्सल्य किया। राजनगर में साधर्मिक वात्सल्य किया, अहमदाबादी संघ ने राधनपुर को तथा थराद के संघ को भोज दिए, भ० रूपजी, भ० समरसिंह ने सार्मिकों को वस्त्र प्रभावना दी, इस प्रकार अनेक उत्सव हुए और सकुशल अपने स्थान पहुंचे। शान्तिदास के मनुष्य ने आकर कडुवामती का उपाश्रय ठीक करवाया। राधनपुर के तपात्रों में सागर के पक्ष में सही करने के कारण आपस में क्लेश हुप्रा ।
शाह श्री तेजपाल सं० १६८० में खम्भात में चतुर्मासक ठहरे और शाह श्री कल्याण को पाटन भेजा, शाहश्री ने खम्भात में "नयी स्नान विधि" तैयार की, श्री शान्तिनाथ की प्रतिष्ठा की।
सं० १६८१ में शाहश्री ने संघ के प्राग्रह से फिर खम्भात में चातुर्मास किया। शाह कल्याण ने राजनगर में चातुर्मास किया, वहां पर शाहश्री के आदेश से लटकन के पुत्र शाह देवकरण की तरफ से बिम्ब प्रवेश किया पौर शाह रूपजी की तरफ से मार्गशीर्ष में उत्सव-पूर्वक बिम्ब प्रवेश किया।
सं० १६८२ में शाहश्री ने राजनगर में चतुर्मास किया और शाह कल्याण को पाटन, तथा शाह विजयचन्द्र को खम्भात भेजा। राजनगर के चतुर्मास में भरणशाली पंचायन प्रमुख ८५ मनुष्यों ने अट्ठाई की, वहां पर शाहश्री ने सीमन्धर स्वामी का "शोभातरंग" बनाया. बड़ा सुन्दर ४३ ढालों में पूरा हुआ है, श्री अजितनाथ की स्तुति, अवचूरी के साथ बनाई। . सं० १६८३ में राजनगर में भण० देवा की बहिन रूपाई ने प्रतिष्ठा के लिए बीनती की, शाही ने सं० १६८३ के ज्येष्ठ सुदि ३ के दिन मुहूर्त दिया। सर्वत्र कुंकुम पत्रिकाएँ भेजी गई । रत्नमय, पित्तलमय, पाषाणमयप्रतिमा ७५ की प्रतिष्ठा हुई।
सं० १६८३ में शाहश्री ने पाटन में चतुर्मास किया, शाह कल्याण को खम्भात चतुर्मास के लिए भेजा। ___सं० १६८४ में शाहश्री ने खम्भात में चतुर्मास किया और शाह कल्याण ने राजनगर में और शाह विजयचन्द्र ने राधनपुर में भण. देवा के
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