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________________ ४६८ 1 [पट्टावली-पराग - करें अन्यथा नहीं, खंभात में शा० धनुवा और मनुवा राज्यमान्य पुरुष हैं, उनमें से मनुप्रा देववन्दन करने आए हैं, यदि वे अपने मन्दिर में पगड़ी नहीं उतारेंगे तो नियम टूट जायगा, यह सोचकर श्रावक मिलकर मन्दिर पाए और मनुमा को कहा - "हम पर समवायी हैं, क्यों पगड़ी उतारेंगे ." मनुप्रा का विरोध होते हुए भी पगड़ी उतारी गई, इस पर विरोधियों ने मनुमा के भाई को कहा - कंसारी के कडुअामतियों ने तुम्हारे भाई की पगड़ी उतार दी, यह सुनकर मनुप्रा का भाई उत्तेजित होकर वहां पाया, अपना भाई सन्मुख मिला और पूछा भाई ? क्या मामला था ? जब कि तुम्हारी पगड़ी उतार दी गई। भाई ने कहा - नहीं मैं स्वयं उतार रहा था उस समय उन्होंने हाथ लगाया, मनुप्रा के भाई का क्रोध शान्त हो गया। बाद में यथार्थ जानकर मनुप्रा ने कंसारी का महाजन इकट्ठा किया और बंधा लगाया कि कंसारी के कडुग्रामतिको कोई कुछ भी चीज न दें, यह बात सुनकर चांपानेर शाह गोरा के पास कंसारी के कडुआमति के श्रावक गए, साधर्मी जानकर उनसे गोरा मिले और आने का कारण पूछा । जाने वालों ने कहा - हम खम्भात के पास के कंसारी गांव से आये हैं, शाह गोरा ने पूछा – कंसारी में दोसी छांछा, दोसीपासा, सहिसा, आदि समस्त सकुशल हैं ? उत्तर में जाने वालों ने कहा - वे सब आपके सामने खड़े हैं, तब दूसरी वार मिले, देवपूजा की और भोजन के बाद पूछा – इतनी दूर से कैसे पाना हुअा ? इस पर सब बात कही, जिसे सुनकर शाह गोरा सुलतान के पास जाके स्तम्भतीर्थ में महाजन पर बादशाह का फर्मान भिजवाया सर्व महाराज मिलकर चांपानेर पहुँचे और शाह गोरा को मिले और कंसारी के महाजन के साथ समाधान कर सकुशल घर आये । शाह गोरा ने सुलतान की प्राज्ञा लेकर, शत्रुञ्जय का संघ निकाला । शाह श्रीवन्त भी शत्रुञ्जय गये, शत्रुञ्जय की यात्रा कर वापस तलहटी पाए, तब उनके पेट में दर्द होने लगा और शाह श्रीवन्त अरिहंत, सिद्ध जपते हुए ३३ वर्ष की उम्र में दिवंगत हुए। ___ बाद में शाह श्रीवीरा गुजरात गए, जहां संवरी का योग नहीं था, वहां कुछ दिन तक श्रावक ने भी व्याख्यान वांचा । सं० १५८१ में शाह रामा थराद में दिवंगत हुए तब उसके पट्टधर शाह राघव बैठे। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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