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________________ ४६६ ] [ पट्टावली-पराग सका, वहां जाने के बाद परी० पूना मूत्र कृच्छ रोग से एक वर्ष के बाद मरण को प्राप्त हुए। वहां से श्रीवन्त निकलकर अहमदाबाद गए, उस समय वहां दोसी देघर की डेहली में सर्व श्रावक इकट्ठे हुए थे। शाह खीमा के देवगत होने तथा परीख० पूना के पौषधशाला जाने सम्बन्धी विचार कर रहे थे। शाह श्रोवन्त ने क्या किया होगा? इस विषय को भी विचारणा हो रही थी, इतने में शाह श्रीवन्त वहां पहुँचे । फटे वस्त्र प्रादि देखकर श्रीवन्त को पहचाना तक नहीं और पूछा कि कहा से पाए ? उत्तर दिया - "पाटन" से आता हूँ, यह सुनकर पूछा गया - परी० पूना का पौषाल गमन सुना जाता है, क्या सच हैं ? उसने कहा - हां! आगे पूछा गया - शाह श्रीवन्त की कुछ खबर जानते हो, उसने कहा - हां जानता हूँ, सभा ने पूछा कहो वे कैसे हैं; उसने कहा - जिसको आप पूछते हैं, वह आपके पास है, यह सुनकर सब खुश हुए और प्रानन्द से मिले तथा श्रीवन्त को दूसरे कपड़े पहनाए । सर्व धार्मिक कहने लगे - अगर तुम हो तो सब कुछ है । शाह श्रीवन्त वहां रहा और वहां रहते हुए सुख शान्ति के निमित्त श्री ऋषभदेव का विवाहला ढाल ४४ में जोड़ा, जो सब गच्छों में प्रसिद्ध है। सं० १५७२ में पार्श्वचन्द्र नागौरी तपा में से निकला और अपना नया मत प्रचलित करके मलीन वेश में विचरता हुअा लोगों को अपने मत में खींचने लगा, जहां धर्मार्थी उपदेशक का योग नहीं वहां लोगों को अपने मत में जोड़ता था। वीरमगांव प्रमुख अनेक स्थान पार्श्वचन्द्र ने ले लिये थे, आंचलिक तथा खरतर भी क्रिया उद्धार करके जहां संवरी श्रावक का योग नहीं था, वहां उनको अपने समाज में मिलाते थे, इस समय भी कितने ही गांवों में संवरियों के विना भी शाह श्री कडुवा की सामाचारी रख रहे हैं। शाह श्रीवन्त जो देवर की देहली में रहे हुए हैं, वहीं इनकी ख्याति सुनकर अनेक ब्राह्मण शाह श्रीवन्त के पास प्राए और इनके साथ प्रमाणवाद छन्दशास्त्र आदि के सम्बन्ध में वार्तालाप हुा । ब्राह्मणों ने कहा - Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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