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________________ ४६२ ] [पट्टावलो-पराग ३ पाक्षिक सिद्धान्त में पूर्णिमा को नामा है, परन्तु आचरणा से चतुर्दशी को करते हैं। ४ पर्युषणा युगप्रधान कालकाचार्य की आचरणा से चतुर्थी को करते हैं । ५ श्रावक श्राविका के लिए मुंहपत्ति चरवला रखना शास्त्रानुसार है । ६ सामायिक वार-वार करना चाहिए, ऐसा आवश्यक में लेख है । ७ पर्व विना भी पौषध करना चाहिए, ऐसा ज्ञातासूत्र में प्रमाण है । ८ द्विदल छोड़ना चाहिए, ऐसा कल्पभाष्यादि में प्रमाण है। ६ मालारोपण उपधान का निषेध । १० स्थापनाचार्य रखना सिद्धान्तोक्त है । ११ स्तुति तीन करना, आवश्यक में लेख है । १२ वासी विदल खाना निषेध है, योगशास्त्रानुसार । १३ पौषध त्रिविधाहार चतुर्विवाहार करने का प्रावश्यक चूणि में विधान है। १४ सिद्धान्तानुसार पंचांगी मान्य है। १५ प्रथम सामायिक पीछे इरियावही करने का आवश्यक चूरिण में लेख है । १६ वीर के पांच कल्याणक मानना कल्पादिक में प्रमाण है। १७ दूसरा वन्दन बैठे देना समवायांग वृत्ति में लेख है। १८ साधु के कृत्यों का विचार दशवकालिक प्राचारांग आदि में है। १६ श्रावण दो होने पर पर्युषणा दूसरे श्रावण में और कार्तिक दो होने पर चातुर्मासक समाप्ति दूसरे कार्तिक में करना, ऐसा चूणि आदि में है। २० स्त्री को पौषध करने का प्रमाण उपासकदशा में और पूजा करने का ज्ञातासूत्र में है। २१ वर्तमानकाल में संघपटक आदि के आधार से दसवां आश्चर्य चल रहा है । प्रतिक्रमण विधि प्रमुख अनेक बातों का खुलासा कर अपने पद पर शाह खीमा को स्थापित किया । शाह खीमा आदि संवरियों ने शाहश्री को मोषध के लिए कहा, इस पर शाहश्री ने कहा - मेरे लिए औषध "श्री अरि ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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