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________________ ४६० ] [ पट्टावली-पराग सं० १५५२ में थराद में चतुर्मासक हुमा, उस समय पं० हरिकीर्ति भी वहीं थे। शाह कडुवा की व्याख्या सुनकर बहुत खुश हुए, थराद में बहुतेरे प्रादमियों को प्रतिबोध किया, वहां पर चार श्रावक शाहश्री के पास संवरी हुए। उनके नाम शाह लूणा, शाह मांगजी, शाह जसवन्त और शाह डाहा । थराद में शाहश्री के धर्म की श्रद्धा सारे नगर को हो गई । थराद निवासी श्रावक शाह राया (राजा) शाहश्री के पास बहुत पढ़ा कुछ दिन तक उनके पास रहा, थराद, निवासी शाह दूदा पंन्यास के पास बहुत पढ़ा। सं० १५५३ में, १५५४ में और १५५५ में जालोर प्रमुख नगरों में विचरे और अनेक तीर्थों की यात्रा की, वहां यति द्वारा प्रतिष्ठा की जाने सम्बन्धी तथा साधु के कृत्यों के विषय में चर्चा हुई, तथा पर्व के दिनों को छोड़कर शेष दिनों में पौषध करने के सम्बन्ध में पांचलिक तथा खरतरों के साथ चर्चा हुई और स्थानांग ज्ञातादि के आधार से पौषध करना प्रमाणित किया। सं० १५५६ में आगरा की तरफ गये, नागोर, मेड़ता, मागरा यावत् सर्वस्थानों में यात्राएँ की । सं० १५५८ में पाटन गए, वहाँ परीख पूना ने शाहश्री के पास वृद्धशाखीय ओसवाल ज्ञातीय माता-पिता रहित एक ग्यारह वर्ष के बच्चे को लाया, जिसका नाम श्रीवंत था। शाहश्री को कहा - इस कुमार को प्राप पढ़ाइये, शाहश्री ने कुमार का हाथ देखा और शिर हिलाते हुए कहाइसका प्रायुष्य तो कम है, परन्तु पढ़ने वाला इसकी बराबरी नहीं कर सकेगा। परीख पूना ने उसको अपने घर रक्खा और कुछ दिनों तक शाहश्री के पास पढ़ाया। ___सं० १५५६ में शाहश्री नवानगर गए, वहां चौमासा करके अनेक मनुष्यों को धर्म का मार्गः समझाया। सं० १५६० में राजनगर में चतुर्मासक किया, वहां पर पटेल संघा, पटेल हांसा संवरी बने। सं० १५६१ में सूरत में चातुर्मासक रहे, वहां शाह बेला, शाह जीवा, संवरी हुए। Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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