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________________ ४८८ [ पट्टावली पराग सं० १५४३ में चूड़ा राणपुर में शाह संघराज के घर चातुर्मास ठहरे, वहां शाहश्री के पास शाह राणा, शाह कर्मण, शाहं शवसी, शाह पुन्ना; शाह धींगा, पांच श्रावक संवरो हुए, चूड़ा राणपुर में २०० घर शाहश्रो कडुमा की श्रद्धा में पाए । सं० १५४४ में जूनागढ़ में ठक्कर राजपाल के घर चतुर्मासक किया, वहां लुंका के १५० घर अपनी श्रद्धा के बनाए । सं० १५४५ में सौराष्ट्र में विचर कर अमरेली में टक्कर काशी के घर चातुर्मास किया। सं० १५४६ में अहमदाबाद के पास अहमदपुरे में चतुर्मास किया, वहां परिख चोकसी ने पाबू, राणकपुर, चित्तौड़ का संघ निकाला, उसके साथ श्री कडुवा प्रमुख ६ संघरी चले, जहां-जहां संघ गया, या ठहरा उन सब गांवों के चैत्यों को चैत्य-परिपाटी का स्तवन बनाया । श्री कडुवाशाह ने सिरोही में चत्यवासी के साथ वाद कर चैत्यवास का खण्डन किया। वहां से नाइलाई तक को यात्रा करके वापस अहमदाबाद आए और शाह कडुवा रूपपुर में ठहरे। सं० १५४७ में खम्भात में चतुर्मासक किया, वहां लगु(घु)शालिक तपा के साथ चर्चा हुई, जो श्री वन्तकृत हुण्डी से जान लेना, शाहश्री ने वहां से अन्यत्र विहार किया और "शाह रामा जो पहले उपाध्याय रामविमल था, वह स्तम्भतीर्य में प्रतिक्रमण में चार स्तुतियां कराता था, दूसरे भी शाह रामा के साथ प्रतिक्रमण करने वाले चार थुई करते थे, अब भी खम्भात में इसी प्रकार का मार्ग चलता है । अर्थात् कितनेक संवरी चार थई करते हैं, सिद्धान्तोक्त गणधरोक्त ३ थुई है, परन्तु पावश्यक मैं, अावश्यक चूणि में, प्रावश्यक वृत्ति में, ललितविस्तरा प्रादि ग्रन्यों में चतुथ स्तुति लिखो है। सं० १५४८ में पाटन में चतुर्मामक किया, वहां परी० थावर तथा दोसी समर्थ के बड़ेरों को प्रतिबोध दिया, पाटन में वु० धनराज परी० की का के दादे का बिम्ब प्रवेश किया, उस समय शाह कडुवा मन्दिर में दर्शनार्थ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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