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चतुर्थ-परिच्छेद ]
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की वाचक-परम्परा में सिंहगिरि का नाम नहीं है, किन्तु इस परम्परा में वाचक "ब्रह्मद्वीपकसिंह" का नाम अवश्य आता है, २१ वें स्थविर को "सिरिमन्तो" नाम से उल्लिखित किया है, जो गलत है, वास्तव में इनका नाम "हिमवन्त" है।
पट्टावलीकार ने २३ वां नम्बर गोविन्द को दिया है, जो वास्तव में नन्दी की मूल गाथाओं में नहीं है, किन्तु यह नाम "प्रक्षिप्त गाथा में" प्राता है।
पट्टावलीकार ने २५ वें स्थविर का नाम "लोहाचार्य" लिखा है, जो यथार्थ नहीं है, इनका खरा नाम “लौहित्याचार्य" है।
पट्टावलीलेखक ने २६ वें स्थविर का नाय "दुप्पस'' लिखा है, जो अशुद्ध है । देवद्धिगणि के पट्टगुरु का नाम ',दुप्पस" नहीं किन्तु "दूष्यगणि' है, यह लेखक को समझ लेना चाहिए था।
पट्टावलीकार ने देवद्धिगरिण के बाद वीरभद्र २८ शिवभद्र २६ आदि ३३ नाम कल्पित लिखे हैं, अतः इन पर ऊहापोह करना निरर्थक है, इनके
आगे पट्टावली लेखक ने "ज्ञानाचार्य' "भारणजो" आदि लौंकागच्छ को परम्परा के ऋषियों के नाम दिए हैं, इन नामों में भी पंजाबी आधुनों की पट्टावली के कई नामों के विरुद्ध पढ़ने वाले नाम हैं जिनकी चर्चा पहले ही पट्टावली-विवरण में की गई है।
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