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________________ चतुर्थ-परिच्छेद ] [ ४७३ इसी प्रकार बृहत्कल्पोक्त गंगा, यमुना, सरयू, इरावती पौर मही इन पांच महानदियों का परिचय देते हुए जेठमलजी इरावती को लाहौर के पास की रावी बताते हैं और मही गुजरात में बडौदा शहर के उत्तर में ८-१० माईल के फैसले पर बहने वाली मही बताते हैं । जेठमलजी कौशम्बी के मागे दक्षिण में समुद्र और उसकी जगती बताते हैं, यह भौगोलिक "मज्ञान" मात्र है, कौशम्बी नगरी माधुनिक इलाहबाद से दक्षिण में वत्स देश की राजधानी थी। उनकी दक्षिण सीमा विन्ध्याचल के उत्तर प्रदेश में ही समाप्त हो जाती थी भोर समुद्र कहाँ से १ हजार माईल से भी अधिक दूर था, इस परिस्थिति में कौशम्बी की दक्षिण सीमा समुद्र के निकट बताना भौगेलिक अज्ञानता सूचक है । पश्चिम दिशा में मार्यदेश की अन्तिम सौमा थूभणानगरी कहते हैं और उनकी हद कच्छ देश तक बताते हैं, यह भी गल्त है, प्रथम तो नगरी का नाम ही गलत लिखा है, नगरी का नाम थूभरणा नहीं, पर उसका नाम "स्थूणा" है और वह सिन्ध देश के पश्चिम में कहीं पर पायी हुई थी और उसके मास-पास के प्रदेश को जेनसूत्रों में "स्थूणाविषय" बताया है, कच्छ को नहीं। भारत के उत्तरीय पार्यक्षेत्र की सीमा पंजाब के शहर स्यालकोट तक बताते हैं, यह भी प्रज्ञानजन्य हैं, स्यालकोट पंजाब प्रदेद में वर्तमान भारत के वायव्यकोण में पाया हुआ है, तब कुणाल देश भारत के उत्तरीय भाग में था पोर माजकल के "सेटमहेट" के किले को प्राचीनकाल में श्रावस्ती कहते थे । गोरखपुर तथा बस्ति जिले के आस-पास का प्रदेश पूर्वकाल में कुणाल देश कहलाता था। ___ दशार्यपुर को जेठमलजी देसारणपुर लिखते हैं और उसको माधुनिक मन्दसौर कहते हैं जो यथार्ण नहीं है । दशार्णपुर आजकल का मन्दसौर नहीं किन्तु पूर्व मालवा के पहाड़ी प्रदेश में पाए हुए दशार्ण देश की राजधानी थी और दशाणपुर अथवा मृत्तिकावती इन नामों से प्रसिद्ध थी, Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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