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प्रथम-परिच्छेद ]
हैं कि गद्य में लिखा हुआ अर्थ पद्यों में दिया गया है। यह कथन अधिकांश में ठीक है, परन्तु कतिपय स्थविरों के नाम गद्य में न होते हुए भी पद्यों में दिये गये हैं, जैसे : दुर्जयन्त कृष्ण, धर्म के बाद मार्यहस्ती, आर्यधर्म, सिंह के बाद आर्यजम्बू और आर्यनन्दित नाम के स्थविर पट्टधर न होते हुए भी अपने समय में अनुयोगधर होने से प्रसंगवश उनका स्मरण किया गया है और देसिगणि, स्थिरगुप्त, क्षमाश्रमण; कुमारधर्मगणि और देवद्धिगणि क्षमाश्रमण इन चार स्थविरों की स्तुति देवद्धि क्षमाश्रमण के पुस्तकलेखन के बाद परवर्ती किसी विद्वान् ने बना कर गाथाओं के साथ जोड़ दो मालूम होती है।
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