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________________ ४१२ ] (१६) प्रार्य रोहण ( १९ ) धरणीधर स्वामी (२२) श्रार्य नक्षत्र (१७) पुष्यगिरि (२० ) शिवभूति (२३) श्रार्यरक्ष (२५) जेहल विसन स्वामी (२६) संदिदत्र Jain Education International 2010_05 [ पट्टावलो-पराग For Private & Personal Use Only (१८) युगमन्त्र (२१) आर्यभट्ट पट्टावली लेखक यह परम्परा नन्दीसूत्र के आधार से लिखी बताते हैं जो गलत है । इस परम्परा के नामों में आर्य-महागिरि और श्रार्य सुहस्ती को एक पट्ट पर माना है, तब प्रार्य - सुहस्ती के बाद के नामों में से कोई भी नाम नन्दी में नहीं है, किन्तु पिछले सभी नाम कल्पसूत्र की स्थविरावली के हैं, इसमें दिया हुआ ११ वां सुप्रतिबुद्ध का नाम अकेला नहीं किन्तु स्थविरावली में "सुस्थित सुप्रतिबुद्ध" ऐसे संयुक्त दो नाम हैं । प्रार्य दिन्न के बाद इसमें वज्रस्वामी का नाम लिखा है जो गलत है । आर्यदिन के बाद पट्टावली में प्रायं सिंहगिरि का नाम है, बाद में उनके पट्टधर वज्रस्वामी है । वज्रस्वामी के शिष्य वज्रसेन के बाद इसमें आर्य - रोहण का नाम लिखा है जो गलत है। आर्यरोहण आर्यसुहस्ती के शिष्य थे, न कि वज्रसेन के, वज्रसेन के शिष्य का नाम 'आर्य - रथ' था। पुष्यगिरि के बाद इसमें १८वें पट्टधर का नाम "युगमन्त्र" लिखा है जो अशुद्ध है । पुष्यगिरि के उत्तराधिकारी का नाम श्रार्य " फल्गुमित्र" था, फल्गुमित्र के बाद के पट्टधर का नाम कल्पस्थविरावली में श्रार्य " घनगिरि" है जिसको बिगाड़कर प्रस्तुत पट्टावली में “धरणीधर स्वामी" लिखा है । आर्य-नक्षत्र के पट्टधर का नाम कल्पस्थविरावली में "आर्य-रक्ष" है, जिसके स्थान पर प्रस्तुत पट्टावलीकार ने "क्षत्र" ऐसा गल्त नाम लिखा है । प्रायंनाग के बाद “कल्पस्थविरावली" में "जेहिल" और इसके बाद "विष्णु" को नम्बर आता है, तब प्रस्तुत पट्टावली में उक्त दोनों नामों को एक ही नम्बर के नीचे रख लिया है । विष्णु के बाद कल्पस्थविरावली में "श्रार्यकालक" का नम्बर है, तब प्रस्तुत पट्टावली में इसके स्थान पर "सढिल" यह नाम है जो शाण्डिल्य का उपभ्रंश है । शाण्डिल्य देवगिरिण के पूर्ववर्ती आचार्य थे, जबकि पट्टावली लेखक विष्णु के बाद के अनेक आचार्यों के नाम छोड़कर देवगिरि के समीपवर्ती शाण्डिल्य का नाम खींच लाया है, इसके बाद (२४) नाग (२७) देवड्ढि www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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