SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 370
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय-परिच्छेद ] [ ३६६ (४३) जिनदत्तमूरि - जिनदत्तसरि का जन्म ११३२ में, दीक्षा ११४१ में, प्राचार्य-पद ११६६ में आचार्य देवभद्र द्वारा दिया गया। इनके समय में संवत् १२०४ में जिनशेखराचार्य से रुद्रपल्लीय शाखा निकली, यह द्वितीय गच्छभेद हुमा। यहां पर वायटगच्छीय जिनदत्तसूरि सम्बन्धी गौशरीर में प्रवेश करने की हकीकत प्रस्तुत जिनदत्तसूरि के साथ जोड़ दी है जो अन्धश्रद्धा का परिणाम है, इसके सिवा अन्य भी अनेक वृत्तान्त जिनदत्तसूरि के जीवन के साथ जोड़ दिये हैं, जो इनकी महिमा बढ़ाने के बजाय महत्त्व घटाने बाले हैं। जिनदत्तसूरि स० १२११ के प्राषाढ़ शुक्ल ११ को अजमेर में स्वर्गवासी हुए। यहां पर क्षमाकल्याणक मुनि ने निम्न प्रकार का डेढ़ श्लोक लिखा है - "श्री जिनदत्तसूरीणां, गुरूणां गुणवर्णनम् । मया क्षमाविकल्याण-मुनिना लेशत. कृतम् ॥ सुविस्तरेण तत्कर्तु, सुराचार्योऽपि न क्षमः ॥१॥" उपर्युक्त षट्पदी से मालूम होता है कि या तो यह पट्टावली क्षमाकल्याणक-कृत होनी चाहिए, जिसका मन्तिम भाग जिनमहेन्द्रसूरि के किसी शिष्य ने जोड़ कर इसे अपना लिया है । अगर ऐसा नहीं है, तो कम से कम जिनदत्तसूरिजी का वर्णन तो क्षमाकल्याणकजी की पट्टावली से उद्धृत किया होगा, इसमें कोई शंका नहीं है । (४४) श्री जिनचन्द्रसरि - इनकी दीक्षा संवत् १२०३ में अजमेर में हुई थी । सं० १२११ में श्री जिनदत्तसूरिजी के हाथ से प्राचार्य-पद पर स्थापित हुए थे और सं० १२२३ में भाद्रपद कृष्णा १४ के दिन २६ वर्ष की उम्र में आपका स्वर्गवास हुआ था । ___Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy