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________________ ३६४ ] [ पट्टावली-पराग श्री जिनमाणिक्यसरि - श्री जिनहंससृरि के पट्ट पर श्री जिनमाणिक्यसूरि हुए, जिनमाणिक्य को श्री जिनहंससरि ने सं० १५८२ में प्राचार्य-पद दिया, स० १६१२ में जिनमाणिक्यसूरि स्वर्गवासी हुए। श्री जिनचन्द्रसूरि युग-प्रधान - श्री जिनमाणिक्यसरि के पट्ट पर जिनचन्द्रसूरि युगप्रधान हुए, इनका जन्म सं० १५६५ में हुआ था और सं० १६१२ में जैसलमेर वेगड़ा भट्टारक श्री गुणप्रभसूरि ने इन्हें प्राचार्य-पद दिया था। जिनचन्द्रसरि ने क्रियोद्धार किया था, इनके प्रथम शिष्य का नाम सकलचन्द्र था, इन्होंने अकबर बादशाह द्वारा आषाढ़ महीने की अष्टाहिका के दिनों में जीवदया का फर्मान निकलवाया था। जिनचन्द्र ने अपना गच्छ जिनसिंहसूरि को सौंप कर सं० १६७० में परलोक प्राप्त किया। श्री जिनसिंहसरि___जिनचन्द्र के पट्ट पर जिनसिंहसूरि हुए, जिनसिंह का जन्म १६१५ में और दीक्षा १६२३ में हुई थी, सं० १६४६ में लाहोर में आपको सूरि-पद प्राप्त हुमा था, सं० १६७० में बिलाड़ा नगर में मि. सु. १० के दिन भट्टारक-पद मिला और सं० १६७४ में मेड़ता में भाप परलोकवासी हुए। श्री जिनसागरसूरि - ___ श्री जिनसिंहसरि के पट्ट पर जिनसागरसूरि हुए, इनकी दीक्षा १६६१ में और भट्टारक-पद १६७४ में मेड़ता में हुआ था। जिनराजसूरि द्वारा सं० १६८६ के वर्ष में किसी दुर्जन ने विषप्रयोग की मिथ्यावार्ता चलाई, जिसके परिणामस्वरूप गच्छ में फूट पड़ी, फिर भी आपकी मान्यता सर्वत्र होती रही, सं० १७२० में प्रापका अहमदाबाद में स्वर्गवास हुमा । श्री जिनधर्मसूरि - जिनसागर के पट्ट पर श्री जिनधर्मसूरि हुए, जिनधर्मसूरि को सं० १७०८ में अहमदाबाद में जिनसागरसूरि ने दीक्षा दी । और सं० १७११ में Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002615
Book TitlePattavali Parag Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1966
Total Pages538
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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