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[ पट्टावलो-पराग
(१३) जिनपद्मसूरि -
सं० १३९० के ज्येष्ठ शुक्ल ६ को युगादिदेव प्रमुख जिनबिम्बों और स्तूप योग्य, जैसलमेर योग्य, क्यासपुर योग्य, जिनकुशलसूरिजी की तीन मूर्तियों की प्रतिष्ठा करने के लिए उत्सव किया और उसी दिन स्तूप में जिनकुशलसूरि की मूर्ति स्थापित की, बाद में श्रीपूज्य जिनपद्मसूरिजी ने दो उपाध्याय प्रमुख १२ साधुओं के साथ जैसलमेर की तरफ विहार किया और प्रथम चातुर्मास्य जैसलमेर में किया।
सं० १३९१ के पौष वदि १० को जैसलमेर में लक्ष्मीमाला गणिनी को प्रवर्तिनी पद दिया, फिर बाड़मेर को तरफ विचरे । दस दिन तक वहां ठहर कर सांचोर की तरफ विहार किया, वहां पर माघ शुक्ला ६ के दिन समुदाय की तरफ से नन्दिउत्सव किया। उसमें नयसागर, अभयसागर क्षुल्लकों को दीक्षा दी। वहां मास से कुछ कम टहर कर वहां से आदित्यपाटक गए और शान्तिनाथ की यात्रा की, उसके बाद माघ पूर्णिमा को समुदाय की तरफ से प्रतिष्ठा-महोत्सव किया। उसमें युगादिदेव आदि के ५०० बिम्बों की श्रीपूज्य ने प्रतिष्ठा की।
सं० १३६२ मार्गशीर्ष वदि ६ के दिन २ क्षुल्लकों की उपस्थापना की।
___ सं० १३६३ के कार्तिक मास में पाटणस्थित श्रीपूज्य ने लघुवय के होते हुए भी प्रथमोपधान तप वहन किया, वहां से फाल्गुन वदि १० को पाटन से जीरावला की यात्रा के लिए प्रयाण किया। नारउद्र होते हुए श्रीपूज्य प्राशोटा (मासेडा) पहुंचे। वहां भीमपल्लीय सा० वीरदेव श्रावक ने विधिसमुदाय के साथ श्रीराज० रुद्रन दन, राज० गोधा आदि को साथ में लेकर प्रवेशोत्सव कराया। वहां से श्रीपूज्य विचरते हुए बूजद्रो पधारे।
उसी वर्ष में सा० मोकदेव ने आबू की यात्रा के लिए श्रीपूज्य से प्रार्थना की और उन्होंने स्वीकृति दी। चैत्र शुक्ल ६ के दिन तीर्थयात्रा योग्य देवालय में शान्तिनाथ को स्थापित कर वासक्षेप किया, फिर अट्ठाई
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