________________
३२० ]
[ पट्टावली-पराग
जालोर में रहते हुए जिनेश्वरसूरिजी ने अपने आयुष्य की समाप्ति निकट जानकर सं० १३३१ के प्राश्विन कृष्ण ५ को प्रातःकाल अपने पद पर प्रबोधमूर्ति गरिए को बैठाया और "जिनप्रबोधसूरि" यह नाम दिया ।
पालनपुर में रहे हुए जिनरत्नाचार्य को प्रदेश दिया कि चातुर्मास्य के बाद सर्वगच्छ तथा विधि-सन्दायों को इकट्ठा कर अच्छे लग्न में फिर सूरिपद स्थापन कर देना, बाद में श्रीपूज्य ने अनशन किया और पंचपरमेष्ठिमन्त्र का ध्यान करते हुए प्राश्विन कृष्ण ६ को दो घड़ी रात बीतने पर श्री जिनेश्वरसू जी स्वर्गवासी हुए । प्रभात समय में समुदाय ने श्रीपूज्य का संस्कार महोत्सव किया और सा० क्षेमसिंह ने अग्निसंस्कार के स्थान पर स्तूप बनवाया ।
चातुर्मास्य उतरने पर जिनरत्नाचार्य जालोर पाए और जिनेश्वरसूरि के उपदेशानुसार जिनप्रबोधसूरि का फिर बड़े ठाट के साथ पद स्थापनाउत्सव कराया और सं० १३३१ के फाल्गुन वदि ८ रवि को श्री जिनरत्नाचार्य द्वारा जिनप्रबोधसूरि की महोत्सव पूर्वक पट्ट-स्थापना हुई ।
(१०) जिनप्रबोधसूरि -
सं० १३३१ के फाल्गुन सुदि ५ को स्थिरकीर्ति भवनकीर्ति और केवलप्रभा, हर्ष प्रभा, जयप्रभा, यशः प्रभा साध्वियों की दीक्षा जालोर में हुई ।
सं० १३३२ ज्येष्ठ वदि १ शुक्र को शा० क्षेमसिंह श्रावक ने नमिविनमि परिवृत युगादिदेव, श्री महावीर भवलोकन शिखरस्थ नेमिनाथबिम्ब, साम्बप्रद्यम्न की मूर्तियां, जिनेश्वरसूरि की मूर्ति, घनदयक्ष की मूर्ति और सुवर्णगिरि पर के चन्द्रप्रभ स्वामिचैत्य की ध्वजा की प्रतिष्ठा करवाई, ज्येष्ठ वदि ६ को चन्द्रप्रम स्वामी के शिखर पर ध्वजारोप हुमा, ज्येष्ठ वदि & को स्तूप में जिनेश्वरसूरि की मूर्ति की प्रतिष्ठा की भौर उसी दिन विमलप्रज्ञ को उपाध्याय पद और राजतिलक को वाचनाचार्य पद प्रदान किया, ज्येष्ठ सुदि ३ को गच्छकीर्ति, चारित्रकीति, क्षेमकीर्ति मुनियों को तथा लब्धिमाला, पुण्यमाला साध्वियों को दीक्षा दी ।
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org