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तृतीय-परिच्छेद ]
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माघ सुदि ६ को सुवर्णगिरि के शान्तिनाथ के प्रासाद पर कलशदण्ड का श्रारोपण श्री चाचिगदेव के राज्य में करवाया । श्राषाढ़ सुदि ११ को वीजापुर में वासुपूज्य - जिनमन्दिर पर कलशध्वज - दण्डारोपण करवाया ।
सं० १३१७ माघ सुदि १२ को लक्ष्मीतिलक गरिण को उपाध्याय-पद मौर पद्माकर की दीक्षा हुई । माघ सुदि १४ को जालोर के महावीर प्रासाद पर स्थित २४ देहरियों पर कलश दण्ड- ध्वजारोपण हुआ । फाल्गुन सुदि १२ को शासनपुर में अजितनाथ प्रासाद पर ध्वजारोप पूर्णकलश गरि द्वारा हुआ । भीमफली में मण्डलिक राज्य में वैशाख सुदि १० सोमवार को महावीर के प्रासाद पर दण्ड- कलश की प्रतिष्ठा और ध्वजारोप हुना और ५१ अंगुल परिमण सरस्वती की प्रतिमा की प्रतिष्ठा की । ३१ अंगुल परिमारण शान्तिनाथ प्रतिमा, ऋषभनाथ प्रतिमा, महावीर - प्रतिमा, पार्श्वनाथ प्रतिमा २ और भीमभुजबल - पराक्रम क्षेत्रपालबिम्ब, ऋषभनाथ महावीर की प्रतिमाएं चतुविशति पट्टक, अजित प्रतिमा, ऋषभनाथ प्रतिमा २, शान्तिनाथ प्रतिमा २ । महावीर की तीन प्रतिमाएं, जिनदत्तसूरि-मूर्ति, चन्द्रप्रभ-प्रतिमा, नेमिनाथ - बिम्ब और अम्बिका की प्रतिमा प्रतिष्ठित हुई और सोम्यमूर्ति, न्यायलक्ष्मी की दीक्षा हुई ।
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सं० १३१८ पौष सुदि ३ को संघभक्त की दीक्षा और धर्ममूर्ति गरिए को वाचनाचार्य पद दिया ।
सं० १३१६ मार्गशीर्ष सुदि ७ को प्रभवतिलक गरिण को उपाध्यायपद हुआ और उसी वर्ष में प्रभवतिलक उपाध्याय का उज्जैनी की तरफ विहार | वहां तपोमतीय पं० विद्यानन्द के साथ यतिवल्य प्रासुक शीतल जल की चर्चा, फिर पालनपुर आदि की तरफ विहार और उसी वर्ष में माघ वदि ५ को विजयसिद्धि साध्वी की पालनपुर में दीक्षा, माघ वदि ६ चन्द्रप्रभ, अजितनाथ, सुमतिनाथ की प्रतिष्ठा । ऋषभनाथ, धर्मनाथ, सुप व नाथ- प्रतिमा, जिनवल्लभसूरि-मूर्ति और सिद्धान्त यक्ष की मूर्ति की प्रतिष्ठा की । पाटन के शान्तिनाथ प्रासाद में अक्षयतृतीया के दिन दण्ड- कलश का आरोपण किया ।
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